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________________ इस प्रकार बन्ध की इन चार अवस्थाओं को समझाने के लिए मोदक का दृष्टान्त दिया हैं एक व्यक्ति ने वातनाशक पदार्थों से लड्डु (मोदक) बनाए, उन लड्डुओं का स्वभाव वात्-व्याधि को मिटाने वाला हैं दूसरे व्यक्ति ने पित्तनाशक और तीसरे ने कफनाशक पदार्थों से लड्डु बनाये हैं। वैसे ही आत्मा (जीव) द्वारा ग्रहीत कर्म पुद्गलों में से कुछ में आत्मा के ज्ञानगुण को आवृत्त करने का स्वभाव होता है। किसी में आत्मा के दर्शनगुण को ढंकने का स्वभाव होता हैं। इस प्रकार भिन्न-भिन्न ग्रहीत कर्म-पुद्गलों में भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रकृतियां-स्वभावों के उत्पन्न होने से प्रकृतिबन्ध कहलाता है। इस प्रकार कुछ मोदकों का परिमाण दो तोले भार का होता है, कोई मोदक एक छटांक का और कोई पावभर। इसी प्रकार कुछ ग्रहीत कर्मस्कन्धों में परमाणुओं की संख्या अधिक और कुछ में कम होती है, इस प्रकार भिन्न-भिन्न परमाणु संख्याओं से युक्त कर्मदलों का आत्मा के साथ सम्बद्ध होना प्रदेशबन्ध कहलाता है। जिस प्रकार इन लड्डुओं में कुछ एक सप्ताह तक कोई एक पक्ष की, और कुछ मोदकों की एक मास तक स्वभाव रूप में रहने की कालमर्यादा या शक्ति होती है। इस काल मर्यादा को स्थिति कहते है। स्थिति के पूर्ण होने पर लड्डु अपने स्वभाव से चलित हो जाते हैं। इसी प्रकार कोई कर्मदल उत्कृष्टतः 70 क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम तक और कोई जघन्यतः अन्तमूहुर्त तक आत्मा के साथ रहते हैं। इस प्रकार विभिन्न कर्मदलों का आत्मा के साथ-साथ पृथक-पृथक काल-सीमा तक बने रहने को स्थितिबन्ध कहते हैं। जैसे कुछ लड्डुओं में मधुर कम होता हैं, कुछ में अधिक, कुछ में कटुरस कम होता है कुछ में अधिक, इत्यादि प्रकार से मधुर-कटुक आदि रसों की न्यूनाधिकता देखी जाती है, वैसी ही कुछ कर्मदलों में शुभ या अशुभरस कम या अधिक होता है। तथा उनमें तीव्रता-मन्दता भी होती है। इसी प्रकार तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर, शुभ-अशुभ रसों का कर्मपुद्गलों के रूप में बन्ध जाना रसबन्ध अनुभागबन्ध कहलाता है।' कर्मबन्ध की विभिन्न दशाएं 'कर्मविज्ञान भाग 4, पृ. 180-181 162 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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