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________________ अशुभनामकर्म की 34 प्रकृतियाँ गतिनामकर्म- नरक, तिर्यंन्च 3-6 जातिनामकर्म- एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय 7- 11 संहनननामकर्म - ऋषभनाराच्, नाराच्, अर्धनाराच्, कीलिका सेवार्तसंहनन । 12-16 संस्थाननामकर्म- न्यग्रोधपरिमण्डल, सादिसंस्थान, कुब्ज, वामन, हूण्डक संस्थान । 1-2 17 है | 18 19 रसनामकर्म- अशुभरस 20 स्पर्शनामकर्म - अशुभ स्पर्श 21-22 आनुपूर्वीनामकर्म- नरकानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी वर्णनामकर्म- अशुभवर्ण गन्धनामकर्म- दुरभिगन्ध 23 अशुभ विहायोगतिनामकर्म प्रत्येक प्रकृति- उपघात 24 25-34 स्थावरदशक के 10 - स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशः कीर्ति । इस प्रकार शुभनामकर्म के 37 प्रकार व अशुभनामकर्म के 34 प्रकार मिलकर नाम कर्म के कुल 71 प्रकार (उत्तर प्रकृतियां) होते हैं। इनमें बन्धननामकर्म के पांच, वर्णनामकर्म के 5, गन्ध के 2, रस के 5, स्पर्शनामकर्म के 8, इनमें से वर्णादि के 2 शुभ 2 अशुभ निकाल देने पर 22 भेद रहते हैं, इस प्रकार नामकर्म की 37+34+22=93 उत्तर प्रकृतियां होती हैं । ' अपेक्षा -भेद से नामकर्म की अपेक्षा 42, 67, 93 या 103 प्रकृतियां भी मानी गई 42 प्रकृतियां 14 पिण्डप्रकृतियां + 8 प्रत्येक प्रकृतियां + त्रसदशक + स्थावरदशक = 42 कर्मविज्ञान भाग 4, पृष्ठ 353-354 2 बायालतिनवरविहं, तिउत्तरस्सयं च सतट्ठी" कर्मग्रन्थ 1/23 Jain Education International 158 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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