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(क) नरकायु (ख) तिर्यञ्चायु (ग) मनुष्यायु तथा (घ) देवायु। नामकर्म- जिस कर्म से जीव में गति आदि भेद उत्पन्न हो, जो देहादि की भिन्नता का कारण हो, अथवा जिसके कारण गत्यन्तर जैसे परिणमन हो, वह नामकर्म हैं। जिस प्रकार एक चित्रकार विविध प्रकार के चित्र बनाता है, विविध रंग भरता है, उनकी विविध आकृतियां बनाता है। उसी प्रकार नामकर्म भी प्राणी को नये-नये नाम, रूप, आकार आदि धारण कराता है, उनको अनेक प्रकार की आकृति, प्रकृति एवं व्यक्तित्व प्रदान करता है।
नामकर्म की दो मुख्य उत्तर प्रकृतियां है- 1. शुभ नाम कर्म तथा 2. अशुभ नामकर्म।
शुभनाम कर्म की 37 प्रकृतियाँ1-2 गतिनाम- मनुष्यगति व देवगति। 3 जातिनाम- संज्ञी पंचेन्द्रिय 4-8 शरीरनाम- औदारिक, वैक्रिय आहारक, तैजस व कार्मण 9-11 अंगोपांगनामकर्म- औदारिक, वैक्रिय, आहारक अंगोपांग। 12 संहनननामकर्म- वजऋषभनाराच संहनन
संस्थाननाम कर्म- समचतुरस्र संस्थान 14 वर्णनामकर्म- शुभ वर्ण
रसनाम कर्म- शुभ रस 16 गंध नामकर्म- सुरभिगन्ध 17 स्पर्शनामकर्म- शुभ स्पर्श 18-19 आनुपूर्वीनामकर्म- देवानुपूर्वी व मनुष्यानुपूर्वी 20 विहायोगतिनामकर्म- शुभ विहायोगति
21-27 प्रत्येकनामकर्म की 7 प्रकृतियां-पराघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, अगुरुलघु, निर्माणनामकर्म, तीर्थंकरनामकर्म।
27-37 त्रसदशक- त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति नामकर्म, ये सब मिलकर 37 प्रकृतियां होती हैं।
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