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सर्वप्रमाणातीत है। किसी भी प्रमाण द्वारा सिद्ध नहीं होने से उसका अस्तित्व नहीं है। जैसे कि खरविषाण।'
प्रथमतः - कर्म पुद्गल है और वह चतुःस्पर्शी होने के कारण सूक्ष्म है, इसलिए परोक्ष ज्ञानियों को इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता, जैसे - परमाणु भी पुद्गल है, किन्तु वह भी अतिसूक्ष्म होने के कारण इन्द्रियों से साक्षात नहीं दिखता, किन्तु सर्वज्ञ को तो कर्म भी प्रत्यक्ष है और परमाणु भी प्रत्यक्ष है।
____ द्वितीयतः - जो वस्तु एक को दिखाई देती है, वह सबको दिखाई दे, यह आवश्यक नहीं है। संसार में कुछ पशु या पक्षी ऐसे हैं जो सब मनुष्यों को सब क्षेत्रों में नहीं मिलते हैं। इसी प्रकार कर्म का अस्तित्व सर्वज्ञों को प्रत्यक्ष है, अल्पज्ञों को नहीं।
तृतीयतः - जैसे परमाणु पुद्गल स्वयं अल्पज्ञों को प्रत्यक्ष नहीं दिखता किन्तु उसके कार्य तो प्रत्यक्ष ही है। इसी प्रकार कर्म अल्पज्ञों को चाहे प्रत्यक्ष न हो, उसके सुख-दुखादि कार्य (फल) प्रत्यक्ष ही है।
इसलिए कर्म को कार्यरूप में प्रत्यक्ष मानना चाहिए। अनुमान प्रमाण द्वारा कर्म की अस्तित्व सिद्धि विविध अनुमानों से भी कर्म का अस्तित्व सिद्ध होता हैं
जैसे अंकुररूप कार्य का कारण बीज हैं, उसी प्रकार सुख-दुःख आदि जो जो कार्य हैं, उसको देने वाला, हेतु, “कर्म" हैं, बिना बीज के कहीं भी अंकुर की उत्पत्ति नहीं देखी जाती, उसी प्रकार प्राणी को होने वाली सुख-दुःख की अनुभूति भी बिना कारण के नहीं हो सकती। इस सम्बन्ध में अग्निभूति का कथन था कि
___सुख के पदार्थ जैसे- रमणी, सुगन्धित माला, चन्दन आदि हैं, तथा दुःख के कारण-विष, या कांटे है जो प्रत्यक्ष दिखाई देते है, इन प्रत्यक्ष कारणों से सुख-दुःख होता
| "कि भन्ने अत्थिकम्म, उयाहु नत्थि ति संसओ तुज्झ।
वेद पयाण य अत्थ, न याणासि तोसिमो अत्यो", विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1610 विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 1612 :- (क) अस्थि सुह-दुक्ख हेऊ, कज्जाओ बीयंकुरस्सेव सो दिट्ठो चेव मई, वभिचाराओ न तं जुत्तं" (ख) महावीर देशना, गाथा 7, पृ. 114
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