________________
अग्निभूति को कर्म के अस्तित्व के सम्बन्ध में यह शंका अन्य कारण से भी हो सकती है। विशेष रूप से जब यह देखा जाता है कि दुराचारी व्यक्ति सुख-सुविधा की जिन्दगी जीता है और सदाचारी दैन्य-दुःख भरी जिन्दगी जीता है तो यह शंका उत्पन्न होती है- यदि कर्म सिद्धान्त ही कोई व्यवस्था है, ऐसा नहीं होना चाहिए।
___ अग्निभूति की शंका का चाहे कोई भी कारण रहा हो, किन्तु इतना स्पष्ट है कि वे कर्म और उसके विपाक के मध्य कोई सम्बन्ध स्वीकार नहीं करते। विशेषावश्यक भाष्य में अग्निभूति की शंका का और उसके सम्बन्ध में महावीर के मुख से दिलाये गए समाधानों को अग्रिम पृष्ठों में प्रस्तुत कर रहे है। कर्म के अस्तित्व के सम्बन्ध में प्रस्तुत शंकाएं और उनके समाधान
विशेष्यावश्यक भाष्य में आचार्य जिनभद्रगणि ने अग्निभूति की कर्मविषयक शंकाओं तथा भगवान महावीर द्वारा उनके समाधानों का वर्णन किया हैं। उनमें अग्निभूति के मन में शंका थी कि- 'कर्म का अस्तित्व है या नहीं?'
समस्या ____कर्मविज्ञान के विश्लेषक जीवन की अन्तरंग और बहिरंग क्रिया के सम्बन्ध में जब सूक्ष्म चिन्तन प्रस्तुत करते है तब ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक प्राणी के जीवन का कण-कण और क्षण-क्षण कर्मसूत्र के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। सभी आस्तिक दर्शनों ने कर्म के अस्तित्व को स्वीकार किया है किन्तु चार्वाक-दर्शन ने कर्म-विज्ञान के रहस्यों से तथा इसके सूक्ष्म विश्लेषण से सर्वथा आंखें मूंद कर "कर्म" के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया। उसका कहना है कि - पेड़ पौधे आदि के समान कर्म नामक कोई भी पदार्थ प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होता। किसी के ललाट पर यह लिखा नहीं होता कि वह कर्म से युक्त है। जिस प्रकार भूत-प्रेत से आविष्ट व्यक्ति के कार्य-कलापों से यह जान लिया जाता है कि यह व्यक्ति भूत से ग्रसित है, उसी प्रकार कर्म ग्रस्त जीव की कोई भी ऐसी विलक्षण चेष्ठा प्रतीत नहीं होती, जिससे यह पता लगे कि यह जीव कर्मग्रस्त है। सभी जीवों की शरीर, इन्द्रियां, मन और वाणी की हर क्रिया सहज रूप से होती रहती है, उनमें भी यह पता नहीं लगता कि यह जीव कर्म से युक्त है। जब शरीर का अन्त हो जाता है, तब ये क्रियाएं बन्द हो जाती है। उसके सोचने,
137 For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org