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शंका-प्रत्यक्ष से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध नहीं है, क्योंकि वह दिखाई नहीं देती
समाधान-आत्मा भले ही साक्षात् दिखाई नहीं दे, किन्तु वह अनेक प्रत्यक्षों से सिद्ध हैं, जैसे- 1. संशयरूप विज्ञान से, 2. स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से, 3. अहंप्रत्यय से, 4. गुणों के प्रत्यक्ष से, 5. संकलानात्मक ज्ञान के कर्ता के रूप में, 6. निषेध्य होने से, 7. दूसरों के शरीर में स्थित आत्मा के रूप में आत्मा की सिद्धि होती है।
इस प्रकार प्रत्यक्ष प्रमाण से आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध किया।
शंका- अनुमान प्रमाण के द्वारा जीव सिद्धि नहीं हैं, क्योंकि कोई साध्य या हेतु नहीं है?
समाधान- किसी साध्य को न देखने पर भी आत्मा का अनुमान हो सकता है, अनुमान के अन्तर्गत कई तर्क दिये1. शरीर का कर्ता होने से आत्मा सिद्ध ।
करण-रूप इन्द्रियों का अधिष्ठाता के रूप में आत्मा। आदाता के रूप में। भोक्ता के रूप में। शरीरादि संघातों का स्वामी। अजीव के प्रतिपक्षी के रूप में लोक व्यवहार द्वारा। पर्यायों द्वारा आत्मद्रव्य की सिद्धि।
इस प्रकार विशेषावश्यक भाष्य ने विविध प्रमाणों द्वारा आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध किया गया है।
इसी प्रकार आगम प्रमाण द्वारा जीव सिद्धि- आप्त पुरुषों द्वारा कथित वचन आगम कहलाता है, ऐसे आगम चार भागों में विभक्त है- अंग, उपांग, मूल एवं छेद। इन सबमें तथा दिगम्बर परम्परा में मान्य ग्रन्थों में भी आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध किया है।
पाश्चात्य दार्शनिकों में रेने देकार्त, स्पिनोजा, लाइबनित्ज आदि ने भी आत्मा के अस्तित्व को मान्य किया है। इस प्रकार अस्तित्व की दृष्टि से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जीव का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है, चाहे वह वृहद् हो या मुक्त, किन्तु अखण्ड चैतन्य इकाई है।
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