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आत्मा के अस्तित्व को नकारने पर धार्मिक आस्था की नींव डगमगा जाती है। धार्मिक आस्था के डगमगाने से नैतिकता समाप्त हो जाती है, परिणामस्वरूप व्यक्ति की जीवनदृष्टि इहलोकवादी एवं भौतिकवादी बन जाती है। भौतिकवादी जीवनदृष्टि से व्यक्ति में स्वार्थ की भावना प्रबल हो जाती है, जिससे हिंसा और शोषण का नग्न ताण्डव देखा जाता है। अतः आत्मा के अस्तित्व मानना धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु नैतिकता व सामाजिकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
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