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________________ डेकार्ट ने आत्मा को एक द्रव्य माना है, जिसका अनिवार्य गुण चिन्तन करना है। उसके अनुसार आत्मा न तो अगोचर तत्व है और न गोचर जीव, वह वस्तु सत् है डेकार्ट बुद्धिवादी दार्शनिक था, अतः उसने आत्मा को भी बुद्धि या विवेक तक ही सीमित कर दिया था। उसके दर्शन में आत्मा बौद्धिक आत्मा के स्तर पर ही सीमित रह गयी थी। जिससे पशुओं आदि को आत्महीन बना दिया। डेकार्ट आत्मा के साथ-साथ शरीर के अस्तित्व को भी स्वीकार करता है, क्योंकि वह द्वैतवादी था। दोनों तत्व विरोधी गुण वाले हैं, आत्मा का गुण चैतन्य है और शरीर का गुण विस्तार है, इन विरोधी गुणों के कारण दोनों कभी एक नहीं हो सकते। उनका इस मत के बारे में यह उल्ले ख है कि- The mind or soul of man is entirely different from body. आत्मा और शरीर दोनों एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न है। तब फिर दोनों में सम्बन्ध कैसे स्थापित हो सकता है? इस प्रश्न पर डेकार्ट ने क्रिया-प्रतिक्रियावाद आधार को स्वीकार किया है। उसके अनुसार शरीर में आत्मा का प्रमुख आधार पीनियल ग्लैण्ड (Pineal Gland) है। हमारा शरीर चलता है तो चलने की अनुभूति आत्मा को होती है, और आत्मा में प्रेम उत्पन्न होता है तो शरीर को भी इसकी अनुभूति होती है। इस तरह क्रिया-प्रतिक्रियावाद के सम्बन्ध के आधार पर दो विरोधी द्रव्यों में आपसी सम्बन्ध स्थापित होता है। डेकार्ट और जैनदर्शन के आत्मतत्व की तुलना जैनदर्शन में जीवतत्व या जीवद्रव्य के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। आत्मा के संदर्भ में कहा गया है कि- जो तत्व चेतन स्वरूप है, ज्ञानवान है, सभी को जानता है, देखता है, उसे जीव कहते हैं। जैनदर्शन में वर्णित आत्मा और डेकार्ट दर्शन की आत्मा में अनेक समानताएं और असमानताएं है, जो इस प्रकार है समानता डेकार्ट और जैन दोनों में आत्मा के विरोधी जड़ द्रव्यों को स्वीकार किया है। जैनदर्शन में आत्मा को जीव कहा गया है और जीव के विपरीत अजीव को भी स्वीकार किया गया है। तत्वार्थश्लोकवार्तिक में "जीवाजीवौ हि धर्मिणों" कहकर Jain Education International 127 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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