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नहीं था जहां मैं हो सकता। इतना होते हुए भी मैंने देखा कि मैं यह सोच नहीं सकता था कि मैं नहीं था। इससे मुझे ज्ञात हुआ कि मैं एक द्रव्य या जिसका सम्पूर्ण स्वभाव सोचना है, और जिसके अस्तित्व के लिए किसी स्थान की आवश्यकता नहीं है या जो किसी भौतिक वस्तु पर निर्भर नहीं है। अतः यह मैं अर्थात् आत्मा जिसके द्वारा मैं जो हूं, देह से पूर्णतया भिन्न है।
इस प्रकार सन्देह की विधि से 'मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं' (Cogito Ergo Sum) का निष्कर्ष डेकार्ट दर्शन का एक महावाक्य बन गया जो आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करता है।
आत्म अस्तित्व के प्रमाण- डेकार्ट ने आत्म अस्तित्व के लिए दो प्रमाण दिये हैंप्रातिभ प्रमाण- आत्मा स्वयंप्रकाश और स्वयंसिद्ध है, उसका ज्ञान प्रतिभ है, इसी ज्ञान से बोध होता है कि मैं हूँ।
यह अपनी प्रामाणिकता स्वयं प्रस्तुत करता है। डेकार्ट के अनुसार "Cargito Ergo Sum is not a syllogism. It is simple movement of thought. A direct intution 'I think' or 'I doubt' immediately implies "I am."
अखण्डनीयता- आत्मा का अस्तित्व अखण्डनीय है, क्योंकि उसका खण्डन बदतोव्याघात है। जैसे कोई वक्ता बोलते समय यह नहीं कह सकता कि मौन व्रत लिए हुए हैं क्योंकि बोलना और मौन की बात करना, बदतोव्याघात है, वैसे कोई पुरुष कह नहीं सकता कि मैं नहीं हूं, क्योंकि उसका यह कथन व्याघातक है। "यः एव हि निराकर्ता तदेव तस्य स्वरूपम्" अर्थात् निराकरण में ही आत्मा का अस्तित्व सिद्ध है। आत्मा का अस्तित्व ध्रुव सत्य है, डेकार्ट इस निर्णय के पश्चात् आत्मा की विशेषताओं को बतलाते है।
यह आत्मा स्वतन्त्र (Free), चेतन (Conscious), अभौतिक (Immaterial), प्रयोजनात्मक (Teleological), सरल (Simple), अविभाज्य (Indivisible) तथा शाश्वत् (Eternal) है। जानना, इच्छा करना तथा अनुभूति आदि विभिन्न मानसिक क्रियाएं आत्मा की भिन्न-भिन्न क्रियाएं हैं।
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