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J.V.S. हाल्डेन के शब्दों में जगत् का मौलिक रूप जड़ (Matter), बल (Force) अथवा भौतिक पदार्थ न होकर, मन या चेतना ही है।
इस प्रकार भौतिक विज्ञानी, शरीर विज्ञानी तथा मनोविज्ञानी भी अपने अनुसन्धान क्षेत्रों में जीव सत्ता का प्रतिपादन अनुभूतियों एवं तथ्यों के आधार पर करते है।
जीववाद, प्राणवाद, फीटिशवाद, आदि अनेकवाद जीव सत्ता की सिद्धि के लिए आगे आए।
जीववाद (Arymism) के अनुसार विश्व का आधार चेतना है, तथा विश्व की प्रत्येक वस्तु चेतनामय है।
प्राणवाद (Spiritism) के अनुसार सारा विश्व जीवों से परिपूर्ण है। जीवों की संख्या अनन्त है।' आत्मा के अस्तित्व के प्रमाण के सम्बन्ध में देकार्त की अवधारणा और जैन दर्शन की उससे तुलना
___ पाश्चात्य दर्शन में आत्मतत्व का समुचित विवेचन सर्वप्रथम प्लेटों के विचारों में देखा जाता है। प्लेटों ने तीन प्रकार की आत्माओं का उल्लेख किया है- 1. बौद्धिक, 2. कुलीन एवं 3. अकुलीन आत्मा।
इसी प्रकार पाश्चात्य दार्शनिक अरस्तु ने क्षमता के आधार पर आत्मा के तीन रूप स्वीकार किये हैं
1. पोषक आत्मा (Nutritive Soul), 2. संवेदन आत्मा (Sensitive Soul), 3. बौद्धिक 3ITHT (Rational Soul)
तत्पश्चात् रेने देकार्त ने विशेष रूप से आत्मतत्व के बारे में चिन्तन-मनन किया।
डेकार्ट के दर्शन में आत्मतत्व- डेकार्ट ने आत्मा के सन्दर्भ में नवीनतम ढंग से चिन्तन किया है। डेकार्ट ने 'संदेह की पद्धति' को अपनाया, उनके अनुसार सत्य साध्य है, उस तक पहुंचने का साधन-संदेह है। उनके अनुसार “मैंने सावधानी से निरीक्षण किया कि मैं क्या हूँ? मैंने देखा कि मैं सोच सकता हूं कि मेरे देह नहीं था, कोई ऐसा स्थान
'जैनदर्शन में जीवतत्त्व, डा. ज्ञानप्रभा, पृ. 80-81
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