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स्पिनोजा के अनुसार चेतना एक है, परन्तु चेतना के असंख्य रूप है और प्रत्येक रूप आत्मा है ।
लाइबनित्ज के चिदणु के रूप में आत्मतत्व को व्याख्यायित किया है।
जॉन लॉक के अनुसार, मैं चिन्तन करता हूं, मैं तर्क करता हूं, मैं सुख-दुःख का अनुभव करता हूं, इससे मूलभूत सत्ता, आत्मा का बोध होता है ।
जॉन बर्कले ने विश्व की समग्र सत्ता को तीन भागों में विभक्त किया है
1. आत्मा, 2. परमात्मा एवं 3. पदार्थ । यह सत्ता का वर्गीकरण, आत्म-अस्तित्व की स्वीकृतिमूलक धारणा है ।'
इस प्रकार जीव सत्ता के स्वतन्त्र अस्तित्व को, प्राच्य एवं पाश्चात्य दार्शनिकों के द्वारा, अनेक प्रबल युक्तियों प्रयुक्तियों द्वारा समर्थन मिला है। जड़ से भिन्न, चेतन सत्ता है ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण में जीव अस्तित्व
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीव के स्वतन्त्र स्थायित्व पर चिन्तन किया है। प्रारम्भ में भौतिक विज्ञान केवल जड़ पदार्थ की खोज में अग्रसर था । भौतिकवादियों का तर्क था कि विश्व में जड़ की स्वायतत्ता है, जड़ से भिन्न चेतना, आत्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है। चेतना तो कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन का मिश्रण है। उसके आगे खोज करने पर जीव विज्ञानी आगे बढ़े।
जीव विज्ञान के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सजीव एवं निर्जीव पदार्थों से परिव्याप्त है। कुछ वैज्ञानिकों का चिन्तन स्थूल से सूक्ष्म की ओर गतिमान रहा। अन्त में उन्हें स्वानुभूति से यह निश्चयात्मक दृढविश्वास हुआ कि - जड़ से भिन्न एक ऐसी महासत्ता है जो सारी प्रकृति में काम कर रही है।
महान् वैज्ञानिक आइन्स्टाइन ने कहा था- मुझे विश्वास होने लगा है कि यह चेतन सत्ता अदृश्य जगत् में सूक्ष्म है किन्तु महान् शक्तिशाली है ।
' दर्शन की कहानी, विल डु रेन्ट, पृ. 74
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