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11. जीव अनेकानेक शक्तियों का पुंज हैं। उसमें मुख्य शक्तियां ये हैं- ज्ञानशक्ति,
वीर्यशक्ति. संकल्पशक्ति। 12. जीव का लक्षण उपयोग है। उपयोग का अर्थ है - जानना और देखना। जीव में
जानने और देखने की अनन्त शक्ति हैं। 13. जीव अखण्ड द्रव्य है, इसके टुकड़े नहीं किये जा सकते, अखण्ड पदार्थ का होने
से जीव का एक भी प्रदेश उससे अलग नहीं किया जा सकता - वह सदा
असंख्यात प्रदेशी रहता है। 14. जीव अनन्त है, परन्तु सर्वजीव वस्तुतः सदृश्य है, इसलिए सभी एक “जीवद्रव्य"
की कोटि में समा जाते है, जितने जीव हैं, उतनी ही आत्माएं हैं। प्रत्येक जीव स्वतन्त्र है और स्वानुभव करता है। परन्तु द्रव्य की दृष्टि से सब एक है क्योंकि
सबमें चैतन्य गुण समान है। 15. जीव द्रव्य शाश्वत है। ठाणांग सूत्र में बताया है - जीव पहले भी था, अब भी है
और आगे भी रहेगा। वह ध्रुव, नियत, शाश्वत अव्यय है। वह तीनों कालों में जीव के रूप में विद्यमान रहता है। जीव कभी अजीव नहीं होता।'
भारतीय दर्शन की तरह पाश्चात्य दर्शन में जीव अस्तित्व का समर्थन कई स्थानों पर मिलता है
__ - प्लेटों के ग्रन्थ दि लाज (The Laws) में उल्लेख मिलता है कि- जीव की स्वतन्त्र सत्ता है, उनके अनुसार शरीर के पार एक आत्मसत्ता है। मनुष्य के पास कोई सर्वश्रेष्ठ वस्तु है तो वह है - दिव्य आत्मा।'
- अरस्तु ने आत्म-अस्तित्व सम्बन्धी विचार प्रकट किए है, जहां-जहां वस्तु के सजीवन अवशेष पाए जाते हैं, वहां-वहां उन सब में आत्मा निहित है।
- आधुनिक पाश्चात्य दार्शनिकों में रेने डेकार्टे का प्रसिद्ध सूत्र था 'काजिटो आरगो सम' अर्थात् मैं चिन्तन करता हूं, इसीलिए मैं हूं। अर्थात् मेरा अस्तित्व है। 'मैं' यह आत्मसूचक है, जो अन्य पदार्थों से भिन्न है।
। जैनतत्वकलिका, धर्मस्वरूप पृ. 119, (आत्मारामजी मा.) २ पाश्चात्य तत्त्वज्ञान का इतिहास, डा. ग.ना. जोशी, खण्ड 1, पृ. 199
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