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________________ दशवकालिक सूत्र में आत्मा के अस्तित्व पर प्रकाश दशवैकालिक सूत्र में आचार-विचार निरूपण के साथ-साथ षड्जीवनिकाय का सविस्तृत विवेचन है। जीव की सत्ता है अथवा नहीं? इस प्रश्न चिह्न का समीचिन समाधान करते हुए यह कहा गया है कि जीव के विद्यमान होने पर ही चरित्रधर्म का प्रतिपादन किया जाता है। क्योंकि यदि जीव ही नहीं है तब चरित्रधर्म की प्ररूपणा किसके लिए की जाती है? अतः आत्मा है, और वह अनेक प्रमाणों से वह प्रमाणित है। आत्मा का लक्षण उपयोग है, वह लक्षण आत्म द्रव्य के अतिरिक्त अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाया जाता। मृत शरीरों के सभी अवयव विद्यमान है तथापि उक्त लक्षण का वहां अभाव है एतदर्थ उनको मृतक शरीर कहा जाता है। “अहं प्रत्यय" करने वाला कोई अन्य पदार्थ अवश्य है और उससे सम्बन्ध रखने वाला शरीर पदार्थ अन्य है। इससे जीव की सत्ता शरीर से पृथक् सिद्ध होती है। यही आत्मद्रव्य षटकाय जीवों में विद्यमान है। एक शंका उद्भूत होती है "असंख्यात प्रदेशात्मक लोक में अनन्त आत्माएं किस प्रकार विद्यमान है? तब सूत्रकार ने इस प्रश्न का समाधान इस प्रकार किया है-"जिस प्रकार एक दीपक के प्रकाश में सहस्र दीपकों का प्रकाश विद्यमान है, उसी प्रकार इस लोक में अनन्त जीव अपना अस्तित्व लिये हुए है इस प्रकार आत्मा का सर्वतन्त्र स्वतन्त्र अस्तित्व स्वतः सिद्ध हो जाता है। दशवैकालिक सूत्र में ऐसा उल्लेख है कि "अणेग जीवा, पुढो सत्ता अर्थात् एक पिण्ड में अनेक जीव होते हुए भी उनकी पृथक्-पृथक् सत्ता है। उत्तराध्ययनसूत्र में आत्मा के अस्तित्व पर प्रकाश उत्तराध्ययनसूत्र में कई स्थानों पर जीव के स्वरूप और अस्तित्व का निरूपण किया गया है। इस सूत्र के 14वें अध्ययन 'ईषुकारीय' में देवभद्र-यशोभद्र के पिता भृगुपुरोहित अपने पुत्रों को प्रव्रज्या नहीं लेने के लिए कतिपय युक्तियों से समझाते है, कि "तुम सांसारिक सुखों का उपभोग करो क्योंकि यह जीवन पुनः-पुनः नहीं मिलता है। उनकी मान्यतानुसार जीव शरीर के साथ ही नष्ट हो जाता है। "जिस प्रकार अरणि में अविद्यमान अग्नि उत्पन्न होती है, दुग्ध में धृत और तिल में तेल विद्यमान है, उसी प्रकार ' दशवकालिक सूत्र, आत्मारामजी मा., जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर, पृ. 62 वही, पृ. 63 100 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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