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है? केशी श्रमण ने अकाट्य युक्तियों और बहुविध प्रयुक्तियों से आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध किया। आत्मा की सत्ता विषयक प्रदेशी राजा की शंकाएं तथा केशीश्रमण के समाधान निम्नानुसार है
राजा प्रदेशी ने तर्क उपस्थित किया कि -- मैंने एक चोर को पकड़वाया और आरक्षकों द्वारा दो, तीन, चार इस तरह सूक्ष्म-सूक्ष्म रूप में विभक्त किया पर कहीं जीव दृष्टिगत नहीं हो पाया विभक्त करने पर जीव दृष्टिगत नहीं हुआ, जबकि शरीर को छिन्न-भिन्न करने पर जीव दिखाई देना चाहिए। इसलिए मेरी मान्यता सही है कि-जीव नहीं है।'
केशीश्रमण के उक्त तथ्य को सुनकर आत्म के अस्तित्व सिद्धि के लिए लकड़हारे का उदाहरण देकर कहा कि-"जिस प्रकार काष्ठ के टुकड़े किये जाने पर अग्नि के दर्शन नहीं हो पाते, किन्तु अरणिकाष्ठ को अग्रभाग से रगड़ने पर ज्वाला प्रज्ज्वलित होती है, स्फूलिंग दृष्टिगत होते है, वैसे ही शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर
देने पर जीव दिखाई नहीं देता। पर आत्मा का अस्तित्व स्वयं सिद्ध हैं। 2.
राजा प्रदेशी ने इस समाधान पर कहा कि- जब आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हैं तो मुझे हस्तामलकवत् जीव को बाहर निकालकर दिखलाइये? तब केशीश्रमण ने वायु से डोलायमान पत्र-पुष्प की ओर संकेत करते हुए कहा-क्या मूर्त काम, राग, वेद, मोह, लेश्या और शरीर से युक्त पवन का रूप-रंग देख सकते हो? प्रदेशी ने कहा-नहीं, तब केशीश्रमण ने समाधान दिया कि-वैसे ही अमूर्त और रूप रहित जीव को मैं कैसे दिखला सकता हूं"?
इस प्रकार राजा प्रदेशी ने केशी श्रमण की तर्क पूर्ण युक्तियों द्वारा समझाने पर स्वीकार किया कि आत्मा का अस्तित्व हैं।
। इसी प्रकार जीवाजीवाभिगम सूत्र में भी जीव और अजीव के अभिगम तथा प्रज्ञापना सूत्र में भी जीव के विषय में जहां गहराई से विवेचना है वहां सुविस्तृत सूक्ष्मतम विश्लेषण भी संप्राप्त है।
राजप्रश्नीय सूत्र, सूत्र 258, पृ. 184 राजप्रश्नीयसूत्र, सूत्र 259, पृ. 185-186 वही, सूत्र 264, पृ. 190
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