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________________ इन्द्रियां करण है, उनका प्रेरक, जिनसे प्रेरणा पाकर इन्द्रियां अपना कार्य सम्पादित करती है, वही आत्मा है। आदाता के रूप में आत्मा की सिद्धि जब इन्द्रियों द्वारा विषयों का ग्रहण अर्थात् (आदान) हो, तब इन्द्रिय और विषय के मध्य में ग्राह्य-ग्रहण-भाव सम्बन्ध होता है ग्रहीता अर्थात् आदाता भी कोई होना चाहिए। क्योंकि इन दोनों में आदान-आदेय भाव सम्बन्ध है। जैसे-सण्डासी और लोहे में आदान-आदेय सम्बन्ध होता है, तो उसे ग्रहण करने वाला आदाता-लौहकार होता है। इन्द्रिय और विषय के बीच कोई आदाता होना चाहिए है, वह आदाता अर्थात् ग्रहणकर्ता आत्मा है। शरीरादि के भोक्ता के रूप में आत्मा की अस्तित्व सिद्धि जैसे-- भोजन वस्त्रादि पदार्थ भोग्य होते हैं, और पुरुष उनका भोक्ता होता है। वैसे ही देह आदि भी भोग्य है एतदर्थ इनका भी कोई भोक्ता होना चाहिए। जिसका कोई भोक्ता नहीं हैं, वे खर-विषाण वत् भोग्य नहीं होते हैं। अतः शरीरादि का जो भोक्ता हैं, वही आत्मा हैं। शरीरादि संघातों का स्वामी आत्मा हैं शरीर, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, अंगोपांग आदि संघातरूप हैं, इसलिए इनका कोई स्वामी अवश्य होना चाहिए। जैसे-'गृह' संघातरूप हैं, तब उसका स्वामी गृहपति होता है। इसी प्रकार शरीर प्रभृति संघातरूप वस्तुओं के समान प्रत्यक्ष रूप में है इसलिए उनके स्वामी का अनुमान अवश्य हैं, वह स्वामी आत्मा है। अजीव के प्रतिपक्षी के रूप में जीव की सिद्धि हम देखते है कि संसार में समग्र पदार्थों का कोई न कोई प्रतिपक्षी होता है। जैसे घट का प्रतिपक्षी अघट। जब हम अघट कहते हैं तो घट रूप व्युत्पत्ति वाले पद का निषेध होता है। अतःएव अघट का विरोधी घट अवश्य हैं। इसी प्रकार 'अजीव' कहने से | "अक्खाणं च करणत्तो, दण्डातीणं कुलालोब्ब"। वही, गाथा 1567 २ "अत्थिर्दिय विसयाणं, आदाणादेय भावतोऽवस्सं। कम्मार इवादाता, लोए, संदास लोहाणं"। वही, गाथा 1568 'भोत्ता देहादीणं भोज्जत्तणत्तो णरोव्व भन्तस्स"। विशेष्यावश्यक भाष्य, गाथा 1569 86 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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