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________________ संशयरूप विज्ञान से आत्मा प्रत्यक्ष हैं जीव है अथवा नहीं? इस प्रकार का जो संशयरूप है, वही जीव है। क्योंकि जीव विज्ञानरूप होता है, जो हम संशय करते हैं वह ज्ञान के द्वारा ही करते हैं। जो विज्ञानरूप होता हैं, वह अपनी अनुभूतियों में स्वसंवेदित होता है, अन्यथा विज्ञान का ज्ञान घटित नहीं होता है । इस प्रकार संशयरूप से जीव प्रत्यक्ष है ।' स्वसंवेदन प्रत्यक्ष जिस प्रकार सुख - दुःख का अनुभव प्रत्यक्ष रूप में होता है, उसी प्रकार "मैं सुखी हूं, मैं दुःखी हूं" प्रभृति वाक्यों में 'मैं' प्रत्यक्ष के द्वारा अतीन्द्रिय आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व सिद्ध होता है । "मैं" का अभिप्राय इस सन्दर्भ में शरीर का बोध नहीं है। इस प्रकार "मैं" विषयक प्रत्यक्ष अनुभव से स्वयं विशुद्धस्वरूप आत्मा का अस्तित्व स्वयं सिद्ध होता है । 2 अहं - प्रत्यय से आत्मा प्रत्यक्ष 'मैंने किया है' 'मैं करता हूं' 'मैं करूंगा' इत्यादि प्रकार से तीनों काल सम्बन्धी अपने विविध कार्यों का जो निर्देश किया जाता है, उसमें 'मैं' पन का जो अहंरूप ज्ञान होता है, वह आत्मप्रत्यक्ष ही है। निर्जीव पदार्थों में चेतना नहीं है एतदर्थ 'मैं पने' का अनुभव नहीं होता है। इस पार्थिव शरीर में भी 'मैं' शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है अन्यथा मृतदेह में भी अहंप्रत्यय होना चाहिए । अतः एव अहंप्रत्यय से आत्मा की सिद्धि होती है। गुणों के प्रत्यक्ष से गुणी आत्मा का प्रत्यक्ष आत्मा है क्योंकि उसके स्मरणादि विज्ञानरूप गुण स्वसंवेदन से प्रत्यक्ष है। जैसे गुणी के गुण प्रत्यक्ष होते हैं, वैसे गुणी भी प्रत्यक्ष होता है। जैसे कल्पवृक्ष परिलक्षित होता है क्योंकि उसमें रूपादि गुण हैं, उसी प्रकार आत्मा के स्मरणादि गुण प्रत्यक्ष रूप है अतः आत्मा (गुणी ) भी प्रत्यक्ष हैं ' कर्मविज्ञान, भाग1 आ देवेन्द्रमुनि, पृ. 11 2 अहमस्मीत्येवदर्शनं स्पष्टादहं प्रत्ययवेदनात्, शास्त्रवार्ता समुच्चय-1 /79/80 3 "कतव करोमि काहं, चाहमहं पच्चयादिमातोय । अप्या सपच्चकखो, तिकालकज्जोवदेसाता।”, विशेष्यावश्यक भाष्य, गाथा 1555 Jain Education International 82 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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