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________________ भी नहीं हो पाता।' तथापि यह कहा है कि "स्वर्ग का इच्छुक अग्निहोत्र करें। ऐसा पूर्वापर-विरुद्ध वचन है इसके कारण आगम से भी आत्मा की सिद्धि नहीं हो सकती। उपमान प्रमाण से जीव की असिद्धि- विराट विश्व में कोई भी अन्य पदार्थ आत्मा जैसा नहीं है जिसकी उपमा से आत्मा को उपमित किया जा सके। आत्मा के समान कोई पदार्थ न होने से आत्मा सम्बन्धी ज्ञान कैसे हो सकता है? अतः उपमान प्रमाण से भी आत्मा की सिद्धि कदापि नहीं हो सकती। अर्थापत्ति से जीव की असिद्धि- विश्व में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जिसका अस्तित्व उसी दशा में सिद्ध हो रहा है, जिससे आत्मा को माना जाए। अतः अर्थापत्ति द्वारा भी आत्मा की सिद्धि सम्भव नहीं है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा रचित विशेषावश्यकभाष्य के गणधरवाद में पूर्वोक्त शंकाओं का तर्कपूर्ण समाधान है पूर्वोक्त तर्कों का खण्डन व आत्मा के अस्तित्व का मण्डन भगवान महावीर ने इन्द्रभूति गौतम की उपर्युक्त शंकाओं का सयुक्तिक समाधान इस प्रकार कियाप्रत्यक्ष प्रमाण से आत्मा की सिद्धि- जिस प्रकार श्रवण द्वारा शब्द का प्रत्यक्षीकरण होता है उसी प्रकार आत्मा का प्रत्यक्ष विज्ञान, अहंप्रत्यय, स्वसंवेदनादि के द्वारा होता है। जिस प्रकार शब्द को हस्तामलक वत् करतल पर रखकर दिखाया नहीं जा सकता हैं, तथापि वह श्रवण के द्वारा प्रत्यक्षरूपेण सिद्ध है तथा यह कहना कि शब्द का अस्तित्व नहीं है और प्रत्यक्ष बाधित है। उसी प्रकार आत्मा का अस्तित्व भी हस्तामलकवत् दिखाई नहीं देने पर भी विभिन्न प्रत्यक्ष प्रमाणों से सिद्ध हैं, अतः यह कहना कि आत्मा नहीं है, यह कथन भी प्रत्यक्षत:-प्रत्यक्ष प्रमाण बाधित है। प्रत्यक्ष प्रमाण से आत्मा की सिद्धि इस प्रकार है 1 "न ह वै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहति शस्ति अशरीरं वसन्तं प्रियाप्रिये न स्पृशतः 81 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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