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वज्जालग्ग
७. संस्कृत अथवा असंस्कृत (प्राकृत) में वर्णित कोई भी अर्थ (भाव) श्रोता का सम्पर्क पा कर जो अपूर्व रस-विशेष उत्पन्न कर देता है, वही बहुत बड़ा आश्चर्य है ।। २ ।।
८. जैसे स्वभाव से उज्ज्वल मौक्तिक जब सुवर्ण-सूत्र से संघटित (ग्रथित) होकर कर्णरन्ध्र में पड़ता है, तब आकर्षक बन जाता है, वैसे ही स्वभावतया निर्दोष काव्य जब सुन्दर अक्षरों से रचित होकर श्रोता के कानों में पड़ता है, तब अभिव्यक्त होता है (अर्थात् उस का महत्त्व ज्ञात होता है) ॥३॥
२-गाहावज्जा (गाथापद्धति)। ९. रमणियों की अर्धाक्षर-भणिति (अर्द्ध-उच्चरित कथन), विभ्रमपूर्ण मधुर-हास्य और कटाक्षावलोकन, निःसन्देह बिना गाथाओं के (पढ़े) नहीं जाने जाते ॥ १ ॥
१० *जैसे आभूषणों से मण्डित, सुलक्षणा (सामुद्रिकशास्त्र वर्णित लक्षणों से युक्त) तथा अन्य-अन्य रातों में रसयुक्त (या प्रेम के रस को समझने वाली) प्रेयसियों के (प्रतीक्षा करने पर भी) न आने पर चित्त दुःखी हो जाता है, वैसे ही जब उपमादि अलंकारों से अलंकृत, व्याकरणप्रतिपादित लक्षणों से युक्त और विभिन्न रागों (संगीत स्वरों) में रसित (ध्वनित) होने वाली गाथायें समझ में नहीं आती, तो मन में खेद होता है ।। २॥
११. यह सत्य (स्पष्ट) है, कि नीरस व्यक्ति गाथाओं का गुप्तभाव और महिलाओं का प्रेम (हृदय) वैसे ही नहीं पा सकते, जैसे पुण्यहीन जन द्रव्य ॥ ३ ॥
१२. छन्दों में रचित, सुन्दर शब्दों एवं उपमादि अलंकारों से युक्त और सरस उक्तियों वाली गाथा, पढ़ने पर वैसे ही रस (शृंगारादि) प्रदान करती है, जैसे स्ववश, रूपवती, मण्डित और मधुर-भाषिणी श्रेष्ठ कामिनी भोग करने पर सुख प्रदान करती है ॥ ४ ॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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