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________________ ( 1 ) प्रकटितबाहुमूलमवनमित स्थूलस्तन भरोत्सङ्गम् । दिवसेन मा समाप्यतां तवैतच्चिकूर-संयमनम् ॥३॥ सुखित इति जीवति विद्धो म्रियतेऽविद्धो तवाक्षिबाणेन । इति शिक्षिता केनाप्यपूर्वमेतं धनुर्वेदम् ॥४॥ निपतति यत्र यत्रैव तव मनोहर तरलतरलिता दृष्टिः । सुन्दरि तत्र तत्रैवाङ्गेषु विजृम्भते मदनः ।।५।। शशिवदने मा व्रजात्र तडागे मृगशावकाक्षि । मुकुलयन्ति न जानासि शशाङ्कशङ्कया कमलानि ॥६॥ __ मैंने व्याख्या की अपेक्षा से वज्जालग्ग के उपलब्ध पाठ में कतिपय परिवर्तन किये हैं। वे स्थल इस प्रकार हैंगायांक उपलब्ध पाठ स्वीकृत पाठ २८१ . थोरवसण दाहेक्कमंडिया थोरवसह दाहेक्कमंडिया इस पाठ में वसण के स्थान पर वसह को स्वीकृति टीकाकार रत्नदेव ने की है। .. ५१२ पुणो वि अंगं पुणो विअंग (पुणो वि अंग) श्लेषानुरोध से दोनों पाठ स्वी कार्य हैं। ५२० महम्मइ म हम्मद ५४८ विरज्जति १-विरज्जति २-वि रज्जति व रजजंति वि लग्गए कंठं १-विलग्गए कंठं २-वि लग्गए कंठं वेस्सा मुट्ठीइ संवहइ १-वेस्सा मुट्ठीइ सं वहइ । २-वेस्सा मुट्ठीइ संवहह । श्लेष में दोनों स्वीकार्य हैं। संपत्तियाइ कालं गमेसु सं पत्तियाइ कालं गमेसु चंदाहयपडिबिबाइ, चंदाहयपडिबिंबाइ, जाइ मुक्कट्टहासभीयाए जाइमुक्कट्टहास भीयाए ६३४ दिसिमणिमंजरी हि दिसि मणिमंजरीहि ७०२ उड्ठं वच्चंति अहो वयंति वच्चंति अहो उडढं अइंति, मूलंकुर व भूवर्णमि । मूलंकुरव पहईए। ૬૬૨ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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