SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ वज्जालग्ग श्री पटवर्धन ने 'जाणवत्ती' को वैकल्पिक छाया 'यानीपात्रिणः' का उल्लेख करते हुये उत्तरार्ध का यह अन्वय किया है ___ "जं अत्थत्थी जाणवत्ती पारे न गया।" पूरी गाथा का अंग्रेजी अनुवाद यों है "अरे समुद्र रत्नाकर नाम धारण करते हुए तुम पूर्वकाल में ही शुष्क क्यों नहीं हो गये क्योंकि तुम्हारे ऊपर से यात्रा करने वाले धनेच्छु पति-वणिक दूसरे तट पर नहीं पहुँच सके ( अर्थात् दुर्घटना ग्रस्त होकर मर गये )।" इस अर्थ पर यह टिप्पणी दी गई है: "यह किसी प्रकार भी स्पष्ट नहीं है कि पोतवाही व्यापारियों को आकस्मिक दुर्घटना का उत्तरदायी समुद्र का रत्नाकरत्व क्यों है ।" उपर्युक्त शंका का समाधान करना आवश्यक नहीं है क्योंकि अंग्रेजी अनुवाद हो दोषपूर्ण है। हम 'मज्झे न' को संयुक्तपद ( तृतीयान्त मज्झेन ) मानते हैं। अतः उत्तरार्ध की संस्कृत छाया यों होगी: मज्झेन जानवत्ती अत्यत्थिणो जं गया पारे । ( मध्येन यानपात्रिणोऽर्थाथिनो यद् गताः पारे ) समुद्र का नाम रत्नाकर है। गाथा उसके रत्नाकरत्व का उपहास करती हुई कहती है अरे रत्नाकर नामधारी समुद्र ! तुम सूख क्यों नहीं गये क्योंकि धन लोलुप पोतवाही वणिक् तुम्हारे मध्य से होकर उस पार चले गये। तात्पर्य यह है कि समुद्र की उस रत्नाकरता को धिक्कार है, जिसका धनलोलुप सायंत्रिकों की भी दृष्टि में कुछ मूल्य है। ___ यदि होता तो वे समुद्र के मध्य में ही रत्नों की कामना से ठहर जाते, उस पार कभी न जाते । गाथा की शब्दावली में विलक्षण व्यंजकता है। निगढ़ व्यंजना-व्यापार को समझे विना इसकी व्याख्या असंभव है। ‘रयणायर' से समुद्र की अनन्तनिधि, 'नामं वहंत' से उसका अदातृत्व एव कार्पण्य, 'मज्झेन' से रिक्तता एवं सेवन वैफल्य, 'अत्थस्थिणो' से उपाधि = वैतथ्य, ‘गया पारे' से याचक वृन्दकृत उपेक्षा और 'जाणवत्तिणों से सायंत्तिक निष्ठलोभातिशयता व्यंजित होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy