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________________ ४५९ " मिट्टी और बीज, दोनों सम्मिलित रूप से वृक्ष के आकार और फलप्राचुर्य के हेतु हैं | गाथोक्त प्रकार से उन्हें पृथक् नहीं किया जा सकता ।" " यदि अंग्रेजी अनुवाद को प्रमाण मान लें तो उपर्युक्त टिप्पणी में कुछ भी अनौचित्य नहीं है | परन्तु प्राकृत गाथा का तात्पर्य कुछ दूसरा ही है । गाथा में समासोक्ति पद्धति से श्लिष्ट विशेषणों द्वारा प्रस्तुत वट वृक्ष पर अप्रस्तुत सिंहासनारूढ अकुलीन राजा के व्यवहारों का आरोपण किया गया है । शब्दार्थ - भूमि = १. मिट्टी या पृथ्वी २. स्थान वज्जालग्ग भूमिर्वसुन्धरायां स्यात् स्थानमात्रेऽपि च स्त्रियाम् । = • वृद्धि, बड़ा होना गाथार्थ - यहाँ भूमि के वटवृक्ष में ऊँचाई होती है ( पक्षान्तर में लाभ या कार्य) होगी । रिद्धी (ऋद्धि) बीय (बीज) = १ . बीज २. वीर्य जइ (यदा) = जब (पाइयसमहण्णव ) 'फलाण रिद्धी' का अन्य अर्थ इस प्रकार भी कर सकते हैं : फलाण + अरिद्धी ( फलनामनद्धिः ) = १. फलों की अवृद्धि, २. लाभ अथवा महत्कार्यों का न होना । फलं हेतुकृते जातीफले फलकसस्ययोः । त्रिफलायां च कक्कोले शस्त्राग्रे व्युष्टिलाभयोः ॥ Jain Education International । यह राजाश्रय से निराश किसी क्षुब्ध सेवक को उक्ति है वट वृक्ष का आकार उर्वर भूमि में विशाल एवं अनुर्वर भूमि में - मेदिनी - —अनेकार्थसंग्रह गुण से ( पक्षान्तर में स्थान या पद के गुण से) जब ( पक्षान्तर में महत्त्व आ जाता है) तब भी फलों की लघुता, बीज ( पक्षान्तर में वीर्य ) के अनुसार For Private & Personal Use Only ?. Both the soil and the seed should be jointly responsible for the stature of the tree and abundance of its fruit. They cannot be separated as done in this stanza. - वज्जालग्गं (अंग्रेजी संस्करण), अंग्रेजी टिप्पणी, पृ० ५८८ आशय यह है क्षुद्र हो जाता है www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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