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" मिट्टी और बीज, दोनों सम्मिलित रूप से वृक्ष के आकार और फलप्राचुर्य के हेतु हैं | गाथोक्त प्रकार से उन्हें पृथक् नहीं किया जा सकता ।" "
यदि अंग्रेजी अनुवाद को प्रमाण मान लें तो उपर्युक्त टिप्पणी में कुछ भी अनौचित्य नहीं है | परन्तु प्राकृत गाथा का तात्पर्य कुछ दूसरा ही है ।
गाथा में समासोक्ति पद्धति से श्लिष्ट विशेषणों द्वारा प्रस्तुत वट वृक्ष पर अप्रस्तुत सिंहासनारूढ अकुलीन राजा के व्यवहारों का आरोपण किया गया है । शब्दार्थ - भूमि = १. मिट्टी या पृथ्वी
२. स्थान
वज्जालग्ग
भूमिर्वसुन्धरायां स्यात् स्थानमात्रेऽपि च स्त्रियाम् ।
=
• वृद्धि, बड़ा होना
गाथार्थ - यहाँ भूमि के वटवृक्ष में ऊँचाई होती है ( पक्षान्तर में लाभ या कार्य) होगी ।
रिद्धी (ऋद्धि) बीय (बीज) = १ . बीज
२. वीर्य
जइ (यदा) = जब (पाइयसमहण्णव )
'फलाण रिद्धी' का अन्य अर्थ इस प्रकार भी कर सकते हैं :
फलाण + अरिद्धी ( फलनामनद्धिः ) = १. फलों की अवृद्धि, २. लाभ
अथवा महत्कार्यों का न होना ।
फलं हेतुकृते जातीफले फलकसस्ययोः । त्रिफलायां च कक्कोले शस्त्राग्रे व्युष्टिलाभयोः ॥
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।
यह राजाश्रय से निराश किसी क्षुब्ध सेवक को उक्ति है वट वृक्ष का आकार उर्वर भूमि में विशाल एवं अनुर्वर भूमि में
- मेदिनी
-
—अनेकार्थसंग्रह
गुण से ( पक्षान्तर में स्थान या पद के गुण से) जब ( पक्षान्तर में महत्त्व आ जाता है) तब भी फलों की लघुता, बीज ( पक्षान्तर में
वीर्य ) के अनुसार
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?. Both the soil and the seed should be jointly responsible for the stature of the tree and abundance of its fruit. They cannot be separated as done in this stanza.
- वज्जालग्गं (अंग्रेजी संस्करण), अंग्रेजी टिप्पणी, पृ० ५८८
आशय यह है
क्षुद्र हो जाता है
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