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________________ ४०१ We should expect सुरंगकाओ कुरयाउ वि. ( पृ० ५२३ ) परन्तु संशोधन अनावश्यक है । 'कुरयाण' और 'सुरंगकाओ' में समानाधिकरण्य न होने से कोई क्षति नहीं है । अर्थ इस प्रकार करें— सुरंगकाओ (सुरङ्गकात् ) = १. सुन्दर वर्ण से (रङ्ग = वर्ण, रंग) २. सुन्दर आनन्द से ( रङ्ग = आनन्द) वज्जालग्ग गाथा में कुरयाण को षष्ठो पंचमी का अर्थ दे रही है । कुरत शब्द सुरत का विपरीत अर्थ प्रकट करता है। सुरत को सार्थकता तल्पादि को सुलभता में हो है । कुरत ( कु = पृथ्वी, रत = रमण ) तो नंगी एवं कठोर भूमि पर व्यभिचारियों के द्वारा किसी बीहड़ स्थान पर छिप कर किया जाता है । अब पूरी गाथा का अर्थ इस प्रकार हो जायेगा - अरे पुजारी, (धार्मिक) धतूरे के लिये घर के पीछे गंभीर (गहरे ) भागों में भटकते हुये तुम केवल कुरबकों के सुन्दर वर्ण से भी वंचित रह जाओगे (अर्थात् सुन्दर रंग वाले कुरबक - पुष्प भी तुम्हें नहीं मिल पायेंगे । केवल यही लाभ इस भ्रमण से मिलेगा | यह व्यंग्य है) । शृङ्गारपक्ष - अरे पुजारी, धूर्तारत ( धूर्ता या विदग्ध स्त्री के साथ रमण) के लिये घर के पीछे के गहरे भागों में भटकते हुये तुम कुरतों (पृथ्वी पर की जाने वाली कुत्सित रति) के आनन्द से भी वंचित रह जाओगे । गाथा क्रमांक ५३८ चंदणवलियं दिढकंचिबंधणं दीहरं सुपरिमाणं । होइ घरे साहीणं मुसलं धन्नाण महिलाणं ॥ ५३८ ॥ अंग्रेजी टिप्पणी में लिखा है 'चंदणवलियं' The sense of this expression is obscure ( पृ० ५२८) अंग्रेजी अनुवाद में (१० ३४९) 'चंदणवलियं' और 'दिढकंचिबंघणं' का कुछ भी अर्थ नहीं दिया गया है । व्याख्यात्मक टिप्पणी में यह उल्लेख है- - " क्या चन्दन का अर्थ लोहा या अन्य कोई धातु है ?" उक्त पदों के अर्थ इस प्रकार हैं चंदणवलियं २६ Jain Education International = १. चंदणेण चंदणकट्ठेण वलियं रइयं अर्थात् चन्दन की लकड़ी से निर्मित ( रचित) (वल = उत्पन्न होना, देखिये पाइयसद्द - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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