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वज्जालग्ग
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अंग्रेजी अनुवादक भी श्लेष का निर्वाह करने में असमर्थ हैं। उन्होंने उत्तरार्ध की अस्पष्टता की घोषणा करते हुए लिखा है कि 'नेहसुरय' का अर्थ कदाचित् 'स्नेह प्रचुररत' है। प्रणय-पक्ष में अन्न की व्याख्या 'अन्यः' करते हुए उनका अभिमत है कि यहाँ नपुंसक लिङ्ग अन्यत् शब्द पुंलिंग अन्यः के अर्थ में प्रयुक्त है।' इस क्लिष्ट एवं श्लिष्ट गाथा की व्याख्या यह हैशब्दार्थ ( उपचारपक्ष )--अन्नं - अन्न ( अनाज ) पियासा = पिपासा, प्यास
नेह ( न+इह ) यहाँ नहीं, यह शब्द संस्कृत
से सीधे प्राकृत में ले लिया गया है । सुरय = सुष्ठ रजांसि यस्मिन् अर्थात् धूलयुक्त या मलिना
यह शब्द विरहिणी नायिका के शारीरिक
संस्काराभाव-जनित मालिन्य का व्यंजक है । न पडिहाइ = ( न प्रतिभाति) नहीं जान पड़ती अर्थात् उसका
पता ही नहीं लगता है। सुरय = ( सु+रजस् ) सुन्दर धूल अर्थात् भभूत या
आयुर्वेदीय भस्म । अल्लय ( अल्ल+य) यहाँ 'य' स्वार्थिक 'क' का रूप है। अल्लय का अर्थ है, आर्द्र । यह देशी शब्द है ।
प्रणय-पक्ष-अन्नं = अन्यत् किमपि वस्तु, अन्य कोई वस्तु । पियास (प्रियाशा) = प्रिय की आशा ( चाह)। सुरय ( सु+रय ) = १. अधिक वेग
(सुरत ) = २. मैथुन पडिहाय (प्रतिभाति) = रुचता है, अच्छा लगता है। नेह ( स्नेह ) = प्रेम
गाथार्थ-( चिकित्सापक्ष ) हे वैद्य, मुझे अन्न नहीं रुचता, मेरा हृदय प्यास से भरा है। इस मलिन ( धूल भरे ) और प्रस्वेद से आर्द्र शरीर में तुम्हारी भभूत या आयुर्वेदीय भस्म का पता नहीं लगता।
प्रणय-पक्ष-हे वैद्य ! अन्य कोई वस्तु रुचती ही नहीं, मेरा हृदय प्रिय की १. वज्जालग्गं, ( अंग्रेजी संस्करण ) पृ० ५२१-५२२
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