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शब्दार्थ:: - अमय = १. विकार रहित, निर्दोष ( स्तनपक्ष में )
२. अमत = अनिष्ट, असम्मत ( मदिरा पक्ष में )
समया
मअ = मद = मदिरा
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चक्कूलया
वज्जालग्ग
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१. समदी ( मदेन कस्तूरिकासहितौ ) = कस्तूरो सहित ( स्तनपक्ष )
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३६९.
२. समृग = मृग सहित ( चन्द्रपक्ष )
विस्तीर्ण ( यहाँ वर्तुल अर्थ उचित नहीं है क्योंकि गजकुंभ में वैसी गोलाई नहीं होती )
किविभत्थण-विमुह = कृपणाभ्यर्थन विमुख = कृपण के समान अभ्यर्थना से विमुख, जैसे कृपण अभ्यर्थना ( याचना ) करने पर मुंह फेर लेता है ( विमुख हो जाता है ) उसी प्रकार स्तन भी अभ्यर्थना- विमुख हैं ( अर्थात् किसी को अभ्यर्थना नहीं करते ) अथवा अभ्यर्थना करने पर मुखहीन ( विमुख ) हो जाते हैं ।
गाथार्थ - जैसे मदिरा अनिष्ट ( असम्मत ) है ( अमत ), वैसे ही ये भी निष्कलुष हैं ( दोषहीन ) ( अमय ), जैसे चन्द्रमा मृगयुक्त ( समय = समृग ) है वैसे ही ये भी कस्तूरीयुक्त ( समद ) हैं, जैसे ऐरावत का कुंभ विस्तृत है वैसे ही ये भी विस्तृत हैं, हे प्रसृताक्षि ! ( मृग के समान आँखों वाली या पसर भर की आँखों वाली, प्रसृत = मृग, पसर ) जैसे कृपण अभ्यर्थना करने पर मुंह फेर लेते हैं ( विमुख हो जाते हैं ) वैसे ही तेरे पयोधर भी अभ्यर्थना- विमुख हैं। ( अर्थात् स्वयं किसी की अभ्यर्थना नहीं करते अथवा अभ्यर्थना करने पर मुखहीन हो जाते हैं, चुप रह जाते हैं ) ।
अचिरप्रसूता रमणी के पीन पयोधरों के प्रति कामुक पति का अभिलाष वर्णित है । पयोधर शब्द से जायात्व, अमय से निष्कलुषता और 'किविणन्भत्यणविमुह' से संयम की व्यंजना होती है ।
१. वज्जालग्गं, ( अंग्रेजी संस्करण ), पृ० ४६८
२. पाइयसद्दमहण्णव के अनुसार यह देशी शब्द ' विशेषावश्यक भाष्य में यों प्रयुक्त है: - अमयो च होइ जीवोकारणविरहा जहेव आयासं ।
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