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________________ वज्जालग्ग ३३५ बालासंवरण-वज्जा ५५१*१. जो सम्पूर्ण अंगों और आकृति की विकृतियों को छिपाने में समर्थ हैं, उन्हें कोई भी तौल नहीं पाता (रहस्य नहीं जान पाता), परन्तु वे ही अन्य व्यक्ति को देखते ही हृदय की तुला पर तौल लेते हैं ॥ १ ॥ कुट्टिणीसिक्खा-वज्जा ५५९*१. मुग्धे ! द्रवोभाव, रोमांच, वाणी की सत्यता और निर्मल दृष्टि-ये कलायें अवसर न रहने पर भी पुनः सीखो ॥ १ ॥ ____ *५५९*२. वेश्या माता आम के भण्डारों (धनियों) के लिए कुमारियों को कुछ सिखा रही है, जैसे—करस्पर्श, मर्दन, चुम्बन, निष्पीडन (निचोड़ना) और निहनन (फेंक देना या छोड़ देना) ॥२॥ वेसावज्जा ५७८*१. जिसका जन्म अज्ञात है (शिव के भी जन्म का पता नहीं है), जो सबके पास जाती है (सर्वगत है) (शिव भी सर्वगत हैं, सर्वत्र विद्यमान रहते हैं), जो बहुत से भुजंगों (वेश्या प्रेमियों) से सेवित है (शिव भी बहुत से भुजंगों अर्थात् सर्पो से सेवित हैं) और जो (संभोगद्वारा) मदन (काम) को नष्ट कर देतो है (शिव ने भी मदन को नष्ट कर दिया था), वह वेश्या शिव के समान सुख प्रदान करे ॥१॥ __ ५७८*२. वेश्या का हृदय कनेर के पुष्प के समान होता है। कनेर के पुष्प का सम्पूर्ण भाग रक्त (लाल या रंगा) होता है, पर भीतर रंग नहीं रहता है। वेश्या का शरीर रक्त (अनुरक्त) होता है, हृदय नहीं (वह शरीर से प्रणय का अभिनय करतो है, वस्तुतः मन से अनुरक्त नहीं होती)॥ २॥ कण्ह-वज्जा ६०५*१. यद्यपि कृष्ण अपने भोतर तीनों लोकों का भार वहन करते हैं, फिर भी राधा के स्तन उन्हें मालती-पुष्प के पत्र के समान धारण कर लेते हैं, प्रेम से कौन नहीं लघु (हल्का) हो जाता ॥१॥ * विस्तृत अर्थ परिशिष्ट 'ख' में देखिये । सा रागं सर्वाङ्गे गुञ्जव न तु मुखे वहति । वचनपटोस्तव रागः केवलमास्ये शुकस्येव ॥ -आर्या सप्तशती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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