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वज्जालग्ग
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३१२*६. जो कभो कुन्ताग्र के समान नखों से विद्ध हो चुके हैं, जो कभी सम्मुख (तुलना के लिये) आये हुए कलशों को पीड़ित करने में समर्थ थे, जो अपना बोझ (पीनता) उतार चुके हैं, वे पयोधर गिर जाने पर भी रण-भूमि में गिरे हुए उन वोरों के समान शोभित होते हैं, जो नख-तुल्य कुन्तों के अग्र-भाग से आविद्ध हो चुके हैं, जो अपने सम्मुख आये गजों के कभों (मस्तकों) को पीड़ित करने में समर्थ थे और जो अपना भार (कर्तव्य) वहन कर चुके हैं ॥ ६ ॥
३१२*७. जो आसन्नवर्ती पतन से भोत थे और जिनका मुँह श्याम हो गया था, वे दोनों सहजात पयोधर स्थान छोड़ते समय (गिरते समय) दुग्ध के आँसुओं से रो पड़े ॥ ७ ॥
३१२*८. खल अलोक (मिथ्या) भाषी हैं, तो ये स्तन भी (कस्तूरो आदि से) अलिप्त (अलिय) हैं। उसका व्यवहार कुटिल है, तो इनकी आकृति कुटिल है। इनका मध्य भाग कृपण के दान के समान बहुत हो कृश है । ये उन्नत विचार के समान हृदय में समाते ही नहीं हैं ॥ ८॥'
३१२*९. उस सुन्दरी के समुन्नत स्तन-भार को उस प्रकार गिरता हुआ देख कर इस असार संसार में कोई गर्व न करे ॥ ९ ॥
३१२*१०. तेरे स्तन उन्नत स्थान (वक्षःस्थल) पर स्थित हैं, सुसंगत हैं (उनको आकृति सुन्दर है, वे सज्जनों के संग रहते हैं) और भरे-पूरे (पोन और सम्पन्न) हैं, फिर भी जो तरुणों का मन-रूपो रत्न-धन चुरा लेते हैं, यह बहुत बड़ा आश्चर्य है ॥ १० ॥
*३१२*११. जो अपने स्थान पर लटक रहे हैं, जो प्रथमावस्था के संभोगों से परिणत हो चुके हैं, जिनका मुख नीचे हो गया है, वे दुग्धहीन स्तन उन पदच्युत एवं निरन्तर वृद्ध राजाओं के समान क्या कर सकते हैं, जो (निराशा और अनुत्साह से) उद्यम-रहित हो चुके हैं और जिनका मुख (लज्जा से) नीचा हो गया है ॥ ११ ॥
१. देखिये गाथा संख्या ३०२ * विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में देखिये ।
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