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वज्जालग्ग ९६. पज्जतगाहाजुयलं (पर्यन्तगाथायुगलम्) ७९४. कविजनों के द्वारा रचित, सब लोगोंको अभीष्ट 'वज्जालय' में जो प्रिय गाथायें हैं, वे प्रसंगानुसार गोष्ठी में पढ़ी जाती हैं ॥ १ ॥
७९५. जो कोई भी इस वज्जालग्ग को स्थान देख कर पड़ता है, वह पुरुष अपने स्थान और अवसर पर गुरुत्व प्राप्त करता है ॥ २ ॥
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