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विकटता गाम्भीर्य और प्रावृतार्थता (ध्वनिगर्भितता) उनके प्रमुख गुण हैं (१०) ऐसे शृंगार रस से लबालब भरे, युवतीजन - वल्लभ और मधुराक्षर प्राकृत काव्यों के रहते भला कोई संस्कृत कैसे पढ़ सकता है ? अन्त में अपार भक्ति एवं निष्ठा के उद्गार प्रकट करते हुए प्राकृत काव्य, प्राकृत-कवि और प्राकृत काव्य-मर्मज्ञ को प्रणाम किया गया है ।
वज्जलग्ग के प्रारम्भ की पाँच और अन्त की दो गाथायें संग्रहकर्ता की रचनायें हैं, शेष अन्य कवियों की । सम्पूर्ण ग्रन्थ में विभिन्न रसों का अभाव न रहने पर भी शृंगार की प्रमुखता है । अनेक वज्जाओं में करुण, वीभत्स, वीर, अद्भुत और शान्त रसों के उदाहरण बिखरे पड़े हैं । नायकनिष्ठ प्रणय के दो रूप हैं - स्वकीया के प्रति और परकीया के प्रति । इसी प्रकार नायिकानिष्ठ प्रणय भी द्विविध हैं-जार या उपपति के प्रति और पति के प्रति । यद्यपि प्राचीन प्रबन्ध काव्यों में स्वकीया का पवित्र प्रणय ही समादृत होता रहा है, तथापि मुक्तक काव्यों की परम्परा में दोनों को स्पृहणीय प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी थी । वज्जालग्ग में परकीया नायिका के उद्दाम प्रणय का चित्र उपस्थित करनेवाली प्रभूत गाथायें विद्यमान हैं । सम्पूर्ण ग्रन्थ रस, ध्वनि, वक्रोक्ति और अलंकृति से परिपूर्ण है । इन्हीं विशेषताओं के कारण इसकी कितनी गाथायें काव्यशास्त्र के शीर्षस्थ ग्रन्थों के विभिन्न प्रकरणों में उद्धृत हैं । यद्यपि रूपक, उत्प्रेक्षा, परिकर, कायलिंग, समासोक्ति, अपह्नुति, दीपक, तुल्ययोगिता, अतिशयोक्ति, विरोधाभास, व्यतिरेक, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकार स्थान-स्थान पर अनायास मिल जाते हैं तथापि अप्रस्तुत प्रशंसा ( काव्यप्रकाशोक्त पंचम भेद, अन्योक्ति) उपमा और श्लेष विशेष उल्लेखनीय हैं । अप्रस्तुत प्रशंसा अन्योक्ति या प्रतीक के रूप में भूरिशः उपलब्ध होती है। कितनी वज्जाओं में तो उसी का अखंड साम्राज्य है । करभ, मालती, इन्दिन्दिर, हंस, सुरतरुविशेष, कमल, कमल-निन्दा, हंसमानस, चन्दन, वट, ताल, पलाश, सुवर्ण, समुद्रनिन्दा, गज, धवल, लेखक, यान्त्रिक, मुसल और कूपखनक वज्जायें उसी के श्रृंखलाबद्ध उदाहरण हैं । इनमें अप्रस्तुत वर्णन कहीं अलंकार के रूप में है तो कहीं ध्वनि व्यंजक प्रतीक के रूप में । अन्य वज्जाओं में भी अप्रस्तुत प्रशंसा के प्रचुर उदाहरण बिखरे मिलते I प्रायः किसी मार्मिक तथ्य की ओर संकेत या व्यंग्य करना कवि का लक्ष्य होने पर वज्जालग्ग में अप्रस्तुत प्रशंसा या समासोक्ति
१. जैसे यान्त्रिक, लेखक, मुसल और कूपखनक वज्जायें ।
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