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वज्जालरंग
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७४-पुव्वकयकम्मवज्जा (पूर्वकृत-कर्म-पद्धति) ६७१. इस लोक में ही स्वर्ग और नरक (दोनों) देखे जाते हैं, परलोक से क्या ? धन से सुख भोगने वालों को स्वर्ग है और दरिद्रों को नरक ।।१।।
६७२. पुत्र साथ छोड़ देते हैं, बान्धव साथ छोड़ देते हैं और संचित धन भी साथ छोड़ देता है। केवल अकेला पूर्वकृत-कर्म ही मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता है ।। २ ॥
*६७३. जो पूर्व-निर्धारित नहीं है, उसे हर लेता है (प्राप्त नहीं होने देता), जो निर्धारित है, उसे नष्ट नहीं करता (सँजोये रहता है), भाग्य ही (मनुष्यों को उनका प्राप्य देने में) अति निपुण है, एक कण भी बढ़ने नहीं देता ॥३॥
६७४. विधाता ने जो लिखा है, वही सब लोगों को फलित होता है (प्राप्त होता है)यह जान कर धीर पुरुष संकट में भी कातर नहीं होते ।। ४ ॥
६७५. इस जीव को जहाँ सुख मिलना है और जहाँ मरना हैअपना कर्म-उसे गला पकड़ कर वहीं ले जाता है ।। ५ ।।
६७६. यदि वही पूर्वकृत पुण्यकर्म का परिणाम ही प्रकट होता है, तो भय, चिन्ता, और अधिक सन्ताप करने से क्या लाभ ? ॥ ६ ॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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