________________
वज्जालग्ग
१६९
४९६. यहाँ सास सोती है, यहाँ मैं और यहाँ सब परिजन सोते हैं। अरे पथिक ! तुम्हें रतौंधी होती है, कहीं मेरी शय्या पर न सो जाओ ॥ २५ ॥
५१-जोइसियवज्जा (ज्योतिषिक-पद्धति) इस प्रकरण में प्रयुक्त प्रतीकों के शृङ्गारिक अर्थ इस प्रकार हैं
ज्योतिषिक = मैथुन कर्ता
खटिका = लिंग गणना = मैथुन करण = रति का आसन फलक = भग गणक = मेथुन कर्ता
शलाका = लिंग (पाठकों को यथा-स्थान इस अर्थ का उपयोग कर लेना चाहिये।)
४९७. हाथ में लम्बी खटिका (खड़िया मिट्टी का लम्बा टुकड़ा) लेकर नगर के बीच ज्योतिषी भ्रमण कर रहा है। यदि कोई गणना कराये तो वह शुक्र (पक्ष में-वीर्य) की गति को जानता है ।। १॥
४९८. ज्योतिषी! विलम्ब मत करो। खडिया लेकर शीघ्र मेरी गणना कर डालो। मंगल के न रहने पर शुक्र की गति (दशा) वैसी ही है (शारीरिक मैथुन समाप्त हो जाने पर भी वीर्य की गति वैसी ही है) ॥२॥
४९९. मेरे घर में ही ज्योतिषी है। वह विचित्र करणों (गणना के साधनों या दिन के ज्योतिष प्रसिद्ध भाग विशेषों) से निष्ठुरतापूर्वक गणना करता है, परन्तु शुक्र (ग्रह विशेष) की गति को नहीं जानता है (पक्ष में-वीर्य का प्रवेश कराना नहीं जानता) इसी से तुम्हारे घर पहुंची हूँ ॥३॥ १. रहती है पड़ी यहाँ साँझ से सास, अचेत हो पेट में जाते ही दाना ।
उस ओर अकेली ही सोती हूँ मैं, चुपचाप बिछा कर टाट पुराना । दिन में सब देख लो दसरी बार, जिस से न पड़े मुझे समझाना । अरे रात के अन्धे बटोही ! कहों, तुम मेरी ही सेज पे लेट न जाना ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org