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वज्जालग्ग
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३१६. उसका लावण्य अंगों में न समा कर कपोल, लोचन, बाहु-लता और जघन-मण्डल से उमड़ता चलता है ॥ ४॥
३१७. जिसके नितम्ब भारी हैं, जो स्तन और जघन का भार वहन करने के कारण मन्द-मन्द संचरण करती है, वह श्यामा मदनमहीपति की जंगम कुटी के समान लगतो है ।। ५ ॥
३१८. देखो, उसका सौन्दर्य मानों कृश अंगों में न समाकर स्वेद के व्याज से त्रिवली के सोपानों से नीचे उतर रहा है ॥ ६ ॥
__३५-सुरय-वज्जा (सुरत-पद्धति) ३१९. प्रवर्तमान विविध करणों (रतिबन्धों या आसनों) से सुशोभित होने वाली, तरुण दम्पतियों की रतिलीला को देखकर दीपक भी इतना तल्लीन हो गया कि उसे समाप्त हुये तेल का पता ही न चला ॥ १ ॥
३२०. 'मारो-मारो' इस प्रकार कहने वाली सुन्दरी के रति-केलि संग्राम में पाव-स्थित दीपक भी सहसा कंपित हो उठा ॥२॥
३२१. किसी सौभाग्यशाली पुरुष के घर में महिला विपरीत रति कर रही है। वलयों का शब्द सुनाई दे रहा है और नुपुरों की रुन-झुन भी अधिक बढ़ गई है ॥ ३॥
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