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वज्जालग्ग
२२-वाह-वज्जा (व्याघ-पद्धति) [विषय-भोग से किस प्रकार शक्तिक्षीण हो जाती है-इसका चित्रण इस 'वज्जा' में किया गया है]
२०४. व्याघ (शिकारी) ने युद्ध-रत सिंह और हाथी-दोनों को एक ही बाण से विदीर्ण कर दिया। अरी व्याध-वधू ! अपना दौर्भाग्य प्रकट होने पर नाच रही हो, लजातो नहीं हो' ? ॥ १ ॥
(यदि पति का तुम्हारे प्रति प्रगाढ-प्रेम रहता तो अब तक निरन्तर संभोग करने के कारण वह इतना क्षीण हो गया होता कि एक ही बाण से हाथी और सिंह का आखेट करने की शक्ति न रह जाती। उसका शौर्य तुम्हारे दौर्भाग्य का सूचक है । ) । २०५. जहाँ गजकुम्भ के विदारण से प्राप्त मौक्तिक से माँस मोल लिया जाता है, उस व्याध-गृह में जो आनन्द है, वह राजप्रासादों में कहाँ ? ॥२।।
२०६. आज का दिन कृतार्थ (सफल) हो गया। अहा! रूपयौवनोन्मत्ता व्याध-वधू धनुष के तनूकरण (खुरच कर पतला करने) से निकले चर्ण को सौभाग्य के समान गलियों में बिखेर रही है ॥ ३॥ (व्याध अनवरत संभोग से इतना क्षीण हो गया था कि अब पुराने भारी धनुष को उठाने में उसे कष्ट होता था। अन्त में उसने विवश होकर मोटे धनुर्दण्ड को खुरच-खुरच कर पतला कर दिया। उसकी पत्नी धनुष के खुरचने से निकले हुए महीन चूर्णों को गलियों में फेंक रही है । लगता है, जैसे वे चूर्ण उसके अखण्ड सौभाग्य की सूचना दे रहे हैं। )
२०७. अरे, मण्डल-मारुत (चक्रवात) धनुष के तनूकरण से उद्भूत वल्कल-चूर्ण को व्याध-वधू की सौभाग्य-पताका के समान प्रांगण के बाहर उड़ा रहा है ।। ४ ॥
२०८. जैसे-जैसे व्याध-वधू के पयोधर बढ़ते हैं, तैसे-तैसे पाँच वस्तुयें क्षीण होती जा रही हैं-पति, धनुष, गाँव के तरुण और सपत्नियाँ ॥ ५ ॥
(पति विषय सेवन से, धनुष तनूकरण से, गाँव के युवक विरहताप से और सपत्नियाँ डाह से दुर्बल होती जा रही हैं) १. केसरी और मतंगज के रण ने, वन में उत्पात मचाया ।
दोनों को रोष-भरे पति ने झट एक ही बाण से मार गिराया। देखते ही यह व्याध-वधू ! अरी तूने गड़ावन कौन सा पाया ? नाचती क्यों है ? अभागिन ! सोच ले, तेरे तो रोने का वासर आया ।
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