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वज्जालग्ग
१८०. जिसके सन्धि-बन्धन चूर-चूर हो गये हैं, वह जुता हुआ उत्तम बैल मर भले ही जाय; परन्तु विषम परिस्थिति में यह नहीं सह सकता। कि गँवार गाड़ीवान उसे पिराने (पैने) से खोदे ॥ २॥'
१८१. उत्तम बैल, भारी बोझ लदा होने पर या तो अपना कन्धा तोड़ डालता है या उस दुर्वाह्य शकट को खोंच ले जाता है; परन्तु प्रेरणा के लिये उच्चारित उत्तेजनात्मक शब्द नहीं सह पाता (टिक-टिक् शब्द) ॥३॥
१८२. अरे अविशेषज्ञ गृहपति ! तुम उत्तम बैलों से विमुख हो गये हो; किन्तु जब चिकने कीचड़ में पहिया फँस जाने के कारण बोझ से लदी गाड़ी रुक जायगी, तब (उत्तम बैल का गुण) जानोगे ॥४॥
*१८३. जिसका गुण अज्ञात है, वह (गाड़ी आदि में) जोता नहीं जाता और बिना जोते गुण भी नहीं जाना जाता है। जिसको पहली बार गत्यवरोध रज्जु से रोक दिया गया है, वह उत्तम बैल (किसी विषम परिस्थिति में) बोझ से लदी गाड़ी रुक जाने पर खिन्न होता है ॥ ५ ॥२
१८४. यद्यपि हालिक (किसान या हलवाह) के पास बहत-सा गोधन है, तथापि वह एक ही उत्तम श्वेत बैल से आनन्दित रहता है; क्योंकि वही शकट में, वही हल में और वही पीठ पर भी भार ढोता है ॥ ६॥
१८५. जो भार वहन करने में समर्थ हैं और विषम परिस्थिति में भारी बोझ को भी लीला-पूर्वक (आनन्द-पूर्वक) खींच ले जाते हैं, वे धुरी को धारण करने वाले उत्तम श्वेत बैल कहाँ मिलते हैं ? ॥ ७॥
१. संस्कृत शब्द-प्राजन, बैलों को चुभाने वाला दण्डा विशेष २. अर्थ के लिए टिप्पणी देखिए । * विशेष विवरण पारशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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