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________________ वज्जालग्ग के हिन्दी अनुवाद सहित प्रस्तुत संस्करण के प्रकाशन-हेतु एवं वैशिष्ट्य (१) वज्जालग्ग अपने हिन्दी अनुवाद सहित प्रथम बार प्रकाशित हो रहा है। इसके पूर्व इस ग्रन्थ के जो भी सम्पादित और अनादित संस्करण थे, वे अंग्रेजी अथवा अन्य विदेशी भाषाओं में ही थे। स्व० पं० बेचरदासजी ने गुजराती में इसका अनुवाद किया था। परन्तु वह भी अभी तक अप्रकाशित ही है। अतः यह सगर्व कहा जा सकता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ किसी भारतीय भाषा में प्रथम बार प्रकाशित होकर पाठकों के सम्मुख आ रहा है। (२) वज्जालग्ग के अंग्रेजी संस्करण में प्रो० पटवर्धन ने यह स्वीकार किया है कि पर्याप्त प्रयास करने पर भी अनेक गाथाओं के सन्तोषजनक अर्थ नहीं लग पाये हैं, साथ ही अनेक गाथाओं को अस्पष्ट कहकर अननूदित ही छोड़ दिया गया है। प्रस्तुत संस्करण में उन सभी गाथाओं का अर्थ एवं संगतिपूर्ण व्याख्या की गयी है। (३) अंग्रेजी अनुवाद में जिन अनेक गाथाओं की संगतिपूर्ण व्याख्या नहीं हो पायी थी, उनकी संगतिपूर्ण एवं प्रामाणिक व्याख्या करने का प्रयत्न किया गया है, साथ ही संस्कृत टीकाकार रत्नदेव ने भी जिन गाथाओं अथवा शब्दों को अव्याख्यात छोड़ दिया था अथवा जिनकी भ्रामक व्याख्या की थी, उन सभी के वास्तविक अर्थ को सविस्तार स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। (४) संस्कृत टीका के वाक्यों का अन्यथा अर्थ समझकर अंग्रेजी अनुवाद में जो भ्रान्तियाँ हो गयी थीं, उनका प्रस्तुत संस्करण में निराकरण किया गया है। इसके साथ ही पूर्ववर्ती टीकाकारों की अशुद्ध संस्कृत छाया को परिशिष्ट 'ख' में परिमार्जित एवं संशोधित करके प्रस्तुत किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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