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वज्जालग्ग
७८. प्रेमी यद्यपि अंगों का स्पर्श नहीं पाते हैं तथापि देख कर भी उन्हें सुख मिल जाता है। चन्द्रमा सुदूर स्थित होने पर भी कुमुद-कानन को आह्लादित कर देता है' ॥ ६ ॥
७९. किसी को देख कर भी किसी को अकारण ही सुख मिल जाता है। सूर्य से कमलों का क्या प्रयोजन है जो (उसे देख कर) विकसित हो जाते हैं ॥७॥
८०. सूर्य कहां निकलता है और कमल कहां खिलते हैं। संसार में सुजनों का प्रेम दूर रहने पर भी विचलित नहीं होता ॥ ८॥
८-नीइवज्जा (नीति-पद्धति) ८१. जो किसी के मर्म का भेदन करने वाला है और कहने पर हृदय को दुःख देता है, कुलीन व्यक्ति उसे उससे नहीं कहते ॥ १॥
परदय
८२. दूसरों के विद्यमान अथवा अविद्यमान दोषों को कहने से क्या लाभ ? न तो अर्थ मिलता है और न यश । अपितु उस को भी शत्रु बना लिया जाता है ॥ २॥
८३. अपना हित करना चाहिये और हो सके तो परहित करना चाहिये। अपने हित और पराये हित में (यदि किसी एक को करना पड़े तो) अपना हित ही करना चाहिए ॥ ३ ॥
१.
अमिलताण व दीसइ हो दूरे वि संठियाणं पि । जइ वि हु रवि गयणयले इह तह वि लहइ सुहु णलिणी ॥
-नयनन्दी
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