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इस निवेदन के लिखते समयही मुझे शोकसंदेश मिला कि इस ग्रंथमालाके मेरे सहसंपादक डॉ. हिरालाल जैनजीका देहान्त हुआ । उनके रूपमें यह ग्रंथमाला ऐसे उपकारकर्ताको खो बैठी है कि जिन्होंने गत ३० वर्षोंतक उसकी सामान्य नीतिको रूप दिया था । जहाँतक मेरा संबंध है मेरे लिए तो उनका अभाव अपूरणीय है । शोकाकुल हृदयसे मै अकेलाही इस निवेदनपर हस्ताक्षर कर रहा हूँ ।
१७-३-१९७३
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आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये
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