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________________ प्रस्तावना त्रिविक्रम प्रस्तुत व्याकरणका रचयिता त्रिविक्रम माना जाता है। सामान्यतया प्राचीन भारतीय ग्रंथकारोंके बारेमें अधिकृत ज्यादा जानकारी विशेष उपलब्ध नहीं होती। बिल्कुल थोडे ग्रंथकारोंने अपने बारेमें स्वयं जानकारी प्रस्तुत की है। ऐसे थोडे लोगोंमैसे एक है त्रिविक्रम । प्रस्तुत व्याकरणके प्रारंभ तथा अंतमें प्रास्ताविक तथा उपसंहारपरक कुछ श्लोक है । ये उपसंहारपरक श्लोक इस व्याकरणकी कुछ पांडुलिपियोंमें नहीं मिलते हैं। फिरभी डॉ. प. ल. वैद्यजीके मतानुसार, यह निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि ये श्लोक त्रिविक्रमकेही हैं। इन श्लोकों में से प्राप्त जानकारीको आगेके अनुसार कहा जा सकता है। त्रिविक्रमका जन्म बाग नामक व्यक्तिके सत् परिवारमें हुआ था। उसके पितामहका नाम था आदित्यवर्मन् । उसके मातापिताके नाम क्रमशः लक्ष्मी तथा मल्लिनाथ थे। उसके भाईका नाम था भाम ( पाठभेदसे-सोम, राम, वाम, चाम ) जो सदाचार और ज्ञानके बारेमें बडा प्रसिद्ध था । दिखाई देता है कि अर्हन्नंदिके पास त्रिविक्रमका अध्ययन हुआ था। अर्हनदि जैन धर्मग्रंथोंपर प्रभुत्व रखनेवाला तथा तीनों विद्याओंका ज्ञाता मुनि था ( प्रास्ताविक २-३ )। त्रिविक्रम अपने आपको सुकवि कहलाता है (प्रास्ताविक ३ )। इस प्रकार त्रिविक्रम अपने बारे में जानकारी देता है। त्रिविक्रमके धर्म, स्थान तथा समयके बारेमें डॉ. प. ल. वैद्यजीने इसप्रकार अनुमान किये हैं:त्रिविक्रमका धर्म __ यह निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि त्रिविक्रम जैन धर्मका अनुयायी था। प्रास्ताविकके पहलेही श्लोकसे यह बात स्पष्ट होती है जिसमें वीर याने महावीरको वंदन किया गया है । उसी प्रकार प्रास्ताविकके चौथे श्लोकके वीरसेन तथा जिनसेनके उल्लेखोंसे त्रिविक्रमका उनके बारेमें आदरभाव सूचित होता है, तथा यह भी मालूम होता है कि वह जनोंके दिगंबरपंथका अनुयायी था। प्रास्ताविकके ग्यारहवें श्लोकमें हेमचंद्रका उल्लेख मिलता है जिससे ज्ञात होता है कि त्रिविक्रम पंथीय पूर्वग्रहोंसे परे आसानीसे पहुँच सकता था। त्रिविक्रमका स्थान त्रिविक्रम भारतके किस प्रदेशका निवासी था यह बतानेके लिए निश्चित सामग्री उपलब्ध नहीं है । फिरभी, उसका जैन दिगंबर पंथ, उसके पिता, भाई तथा गुरुके (३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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