________________
हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ४
७५. है । उदा.---अर्धम् अड्ढे अद्धं । ऋद्धिः इडुढी इद्धी। श्रद्धा सड्ढा सद्धा। मूर्धा मुढा मुद्धा ॥ ३४ ॥ . दग्धविदग्धवृद्धिदंष्ट्रावृद्धे ॥ ३५ ॥
(दग्ध, विदग्ध, वृद्धि, दंष्ट्रा, वृद्ध) इन शब्दोंमें संयुक्त व्यंजनका ढ होता है । (यह सूत्र १.४.३४ से) पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका वर्णान्तर) नित्य होता है । उदा.- दग्धः दढो। विदग्धः वि ढो। वृद्धिः वुढी । दंष्ट्रा दाढा । वृद्धः वुढो। कचित् (ढ) नहीं होता। उदा.-विद्धकइणिरू विअं, वृद्धकविनिरूपितम् ॥ ३५ ॥ पश्चदशदत्तपश्चाशति णः ।। ३६ ॥
(पञ्चदश, दत्त, पञ्चाशत्) इन शब्दोंमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका ण होता है। उदा.-पञ्चदश पण्णरह । दत्तम् दिण्णं । पञ्चाशत् पण्णासा
ज्ञम्नोः ॥ ३७ ॥
ज्ञ और म्न इनमें (संयुक्त व्यंजनका) ण होता है। उदा.-ज्ञानम् णाणं । संज्ञा संणा । विज्ञानम् विण्णाणं । निम्नम् णिणं । प्रद्युम्नः पज्जुण्णो ॥ ३७॥ स्तवे थो वा ॥ ३८ ॥
स्तव शब्दमें संयुक्त व्यंजनका थ विकल्पसे होता है। उदा.-थवो तवो ॥ ३८ ॥ रो हश्चोत्साहे ॥ ३९ ॥
(इस सूत्रमें १.४.३८ से) थः और वा ये शब्द (अध्याहृत) हैं। उत्साह शब्दमें संयुक्त व्यंजनका थ विकल्पसे होता है और उसके सानिध्यसे ह का रेफ होता है। उदा.-उत्थारो उच्छाहो ॥ ३९ ॥ स्तः ॥ ४० ॥
स्त का थकार हो जाता है। उदा.-हस्तः हत्थो । स्तुतिः थुई। स्तोकम् थो। प्रस्तरः पत्थरो। स्वस्ति सस्थि ॥ ४० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org