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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
संवट्टिओ। प्रवर्तते पअट्टइ । नर्तयति णट्टइ। सूत्रमें धूर्त, इत्यादि शब्दोंको छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण धूर्त, इत्यादि शब्दोंमें तं का दृ नहीं होता ।) उदा.-धूर्तः धुत्तो । वार्ता वत्ता। आतिः अत्ती। संवर्तनम् संवत्तणं । विवर्तनम् विवत्तणं । प्रवर्तनम् पवत्तणं। आवर्तनम् आवत्तणं | मुहूर्तः मुहुत्तो। मूर्तः मुत्तो। आवर्तकः आवत्तओ। संवर्तकः संवत्तओ। वार्तिकः वत्तिओ। वर्तिका वत्तिआ। प्रवर्तकः पवत्तओ। मूर्तिः मुत्ती। उकीर्तितः उक्कित्तिओ। निवर्तकः णिवत्तओ। निर्वर्तकः णिवत्तिओ। कीर्तिः कित्ती। कार्तिकः कत्तिओ। बहुलका अधिकार होनेसे, (कभी कभी त का दृ हो जाता है।) उदा.-वार्ता वट्टा ॥ ३० ॥ प्रवृत्तसंदष्टमृत्तिवृत्तष्टापत्तनकदर्थितोष्ट्रे ।। ३१ ॥
(प्रवृत्त, संदष्ट, मृत्ति, वृत्त, इष्टा, पत्तन, कदर्थित और उष्ट्र) इन शब्दोंमें स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका ट होता है। उदा.-प्रवृत्तः पवट्टो। संदष्टः संदट्टो । मृत्तिः मट्टी। वृत्तम् वटुं । इष्टा इट्टा । पत्तनं पट्टणं । कदर्थितः कवट्टिओ । उष्ट्र: उद्यो। किंतु संदष्ट और उष्ट्र शब्दोंमें होनेवाला ट (संयुक्त व्यंजनके होनेवाले) ठ का अपवाद है ॥ ३१ ॥ वा न्तन्धौ मन्युचिह्नयोः ॥ ३२ ।।
(मन्यु और चिह्न) इन शब्दोंमें संयुक्त व्यंजनको यथाक्रम न्त और न्ध ऐसे ये आदेश विकल्पसे होते हैं । उदा.-मन्तू मण्णू । इन्धं चिण्हं ॥ ३२ ॥ डल्फोर्मर्दितविच्छदछर्दिकपदवितर्दिगर्तसंमर्दे ।। ३३ ॥
(मर्दित, विच्छर्द, छर्दि, कपर्द, वितर्दि, गर्त, संमर्द) इन शब्दोंमें फोः यानी द्वितीय संयुक्त व्यंजनका लित् (-नित्य) ड होता है। उदा.-मर्दितः मड्डिओ। विच्छदः विच्छड्डो । छर्दिः छडी । कपर्दः कवड्डो । वितर्दिः विअड्डी । गर्तः गड्डो । संमर्दः संमड्डो ॥ ३३ ॥ ढोऽर्धर्द्धिश्रद्धामूनि तु ॥ ३४ ॥
. (इस सूत्रमें १.४.३३ से) फोः पदकी अनुवृत्ति है। (अर्ध, ऋद्धि, श्रद्धा, मूर्धन्) इन शब्दोंमें द्वितीय स्तु का यानी संयुक्त व्यंजनका ढ विकल्पसे होता
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