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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
इंगालो अंगारः। चलणो चरणः । जहुहिलो युधिष्ठिरः । सउमालो सुकुमारः। सिढिलो शिथिरः। सक्कालो सत्कारः । मुहलो मुखरः। वलुणो वरुणः । चिलाओ किरातः । लुग्गो रुग्णः । अवद्दालं अपद्वारम् । कलुणो करुणः । दलिदो दरिद्रः। फलिहो परिघः। फलिहा परिखा। दलिद्दाइ दरिद्राति । मच्छलो मत्सरः । संत्रच्छलो संवत्सरः। फालिहइं पारिभद्रम् । दालिद दारिद्यम् । काहलो कातरः । इत्यादि । बहुलका अधिकार होनेसे, (अंगार शब्दमें अ का) इ होनेपरही (र का ल होता है); इतरत्र मात्र-अंगारो । चरण शब्द पाँव अर्थमें होनेपरही (र का ल होता है); इतरत्र चरणकरणं। किरात शब्दमें (क का च होकर) चकारके सान्निध्य होनेपरही (र काल होता है); इतरत्र-नमिमो हर किराअं ॥ ७८ ॥ किरिवेरे डः ॥ ७९ ॥
(किरि और वेर) इन शब्दोंमें रेफका ड होता है। उदा.-किडी किरिः (यानी) वराह, गर्त, चूहा या गंधर्व । वेडो वेरः (यानी) भीरु, शरभ, करभ, मंडूक या दुंदुभि ॥ ७९ ॥ खोः करवीरे णः ॥ ८० ॥
___ करवीर शब्दमें खु अर्थात् आद्य रेफका ण होता है। उदा.कणवीरो ।। ८० ॥ लो ललाटे च ।। ८१ ॥
(इस सूत्रमें १.३.८० से) णः पदकी अनुवृत्ति है। ललाट शब्दमें आद्य लकारका ण होता है। सूत्रमेंसे च (चकार) यह खोः (इम १.३. ८० मेंसे) पदकी अनुवृत्ति दिखानेके लिए है। उदा.-णिडालं णडालं. ॥ ८१ ॥ लोहललाङ्गललागूले वा ॥ ८२ ॥
(लोहल, लाङ्गल और लाशूल) इन शब्दोंमें आद्य लकारका ण विकल्पसे होता है। उदा.-णोहलो लोहलो । लोहल (यानी) शबरविशेष । जंगलं लंगलं। णंगलं लंगूलं ।। ८२ ।।
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