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________________ त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण वयौ कबन्धे ।। ६२ । __ कबन्ध शब्दमें बकारके वकार और यकार होते हैं । (सूत्रके वयोमें) द इत् होनेसे, वकारका उच्चार सानुनासिक होता है। उदा.-कबन्धः कधो कयंधो ।। ६२ ॥ बिसिन्यां भः ।। ६३ ॥ बिसिनी शब्दमें ब का भ होता है। उदा.-मिसिणी ॥ ६३ ।। वो भस्य कैटभे ॥ ६४ ॥ कैटभ शब्दमें भ का व होता है । उदा.-कइढवो ।। ६४ ।। त्वभिमन्यौ मः ॥ ६५ ॥ (इस सूत्रमें १.३.६४ से) वः पदकी अनुवृत्ति है। अभिमन्यु शब्दमें म का व विकल्पसे होता है । उदा.-अहिवण्णू अहिमण्णू ।। ६५॥ मन्मथे ।। ६६ ॥ (इस सूत्रमें १.३.६५ से) मः पदकी अनुवृत्ति है। मन्मथ शब्दमें आध म का व होता है। यह नियम (१.३.६५ से) पृथक् कहा जानेसे (यहाँका व) नित्य होता है । उदा.-वम्महो ।। ६६ ॥ तु ढो विषमे ॥ ६७ ॥ विषम शब्दमें म का ढ विकल्पसे होता है। उदा.-विसढो विसमो ॥ ६७ ।। यो जतीयानीयोचरीयकृत्येषु ।। ६८ ॥ (इस सूत्रमें १.३.६७ से) तु पदकी अनुवृत्ति है। तीय और अनीय इन प्रत्ययोंमें, उत्तरीय शब्दमें, और कृत् ऐसे कहे हुए य प्रत्ययमें, यकारका जकार होता है। (सूत्रमेंसे जमें) र् इत् होनेसे, (ज का) द्वित्व होता है। उदा.-तीय प्रत्ययमें-द्वितीयः विइज्जो विइओ। तृतीयः तइज्जो तइओ। अनीय प्रत्ययमें-करणीयम् करणिज्ज करणीअं। विस्मय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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