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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
ऐसे हैं ।) बडिश, गुड, नड, चपेटा, आपीड, नाडी, वेणु, दाडिम, पाटि ।पाटि अर्थात् पाटयति ऐसा प्रेरणार्थक प्रत्ययान्त (णिजन्त) पद धातु यहाँ लिया है ॥ २४ ॥ स्फटिके ।। २५॥
(इस सूत्रमें १.३.२४ से) टोः पदकी अनुवृत्ति है । स्फटिक शब्दमें टु का यानी ट-वर्गका ल होता है । यह नियम (१.३.२४ से) पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका वर्णान्तर) नित्य होता है । उदा.-फलिओ ॥ २५ ॥ लरकोठे ।। २६ ॥
___ अंकोठ शब्दमें ट-वर्गका ल होता है । (सूत्रके लमें) र् इत् होनेसे, (ल का) द्वित्व होता है। उदा.- अंकोलं ॥ २६ ॥ ढः कैटभशकटसटे ।। २७ ।।
कैटभ, शकट, सटा शब्दोंमें टु (ट-वर्ग) का ढकार होता है। उदा.केढवो । सअढो। सढा ॥ २७ ॥ ठः ।। २८ ॥ ___असंयुक्त, अनादि रहनेवाले और स्वरके आगे होनेवाले ठकारका ढ होता है। उदा.-मठः मढो । कमठः कमढो । शठः सढो। कुठारः कुढारो। असंयुक्त होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं ।) उदा.-चिट्रह । अनादि रहनेपरही । यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-ठाइ । स्वरके आगे होनेपरही (यह वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं।) उदा.-कंठो ॥ २८ ॥ पिठरे हस्तु रश्च ढः ॥ २९ ।।
(इस सत्र में १.३.२८ से) ठः पदको अनुवृत्ति है । पिठर शब्दमें ठ का ह विकल्पसे होता है, और उनके सांनिध्यसे र का ढ होता है। उदा.पिहढो पिढरो पिठरः ॥ २९ ॥ ललूडोऽनुडुगे ॥ ३० ॥
__ असंयुक्त (अस्तोः ), अनादि (अखो): और स्वरके आगे होनेवाले डकारका, उडु, इत्यादि शब्दोंको छोडकर, लकार होता है। (सत्रके लल् में)
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