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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.२ रस्तित्तिरौ॥ ४४ ॥ (इस सूत्रमें १.२.४३ से) अत् शब्दकी अनुवृत्ति है। तित्तिरि शब्द में र् से संबंधित (रहनेवाले) इकारका अ होता है। उदा.- तित्तिरो ।। ४४ ॥ इतौ तो वाक्यादौ॥ ४५ ॥ वाक्यके प्रारंभमें रहनेवाले इति शब्दमें तकारसे संबंधित (होनेवाले) इ का अ हो जाता है। उदा.---इअ विअसिअकुसुमसरो, इति विकसितकुसुमशरः । वाक्यके प्रारंभमें, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण वाक्यके प्रारंभमें. इति न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-पिओ त्ति ।। ४५ ॥ वेगुदशिथिलयोः ।। ४६ ॥ इङ्गुद और शिथिल शब्दोंमें आद्य इ का अ विकल्पसे होता है। उदा.-अंगुअं इंगुअं । सढिलं सिढिलं। पसढिलं पसिढिलं । णिम्मा, णिम्मिश्र, ये रूप मात्र निर्मातृ और निर्मित शब्दोंसे होंगे॥ ४६॥ उ युधिष्ठिरे ।। ४७ ॥ (इस सूत्रमें १.२.४६ से) वा शब्द की अनुवृत्ति है । युधिष्ठिर शब्दमें आद्य इ का उ विकल्पसे होता है । उदा.-जुहुट्टिलो जुहि ढिलो ।। ४७॥ द्विनीक्षुप्रवासिषु ॥ ४८ ॥ (इस सूत्रमें) उत्व शब्दकी अनुवृत्ति है। द्वि शब्दमें, नि इस उपसर्गमें, तथा इक्षु और प्रवासिन् शब्दोंमें आद्य इ का उ होता है। (१.२.४७ से) यह नियम पृथक् कहा जानेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-द्विमात्रः दुमत्तो। द्विजातिः दुआई। द्विविधः दुविहो। द्विरेफः दुरेहो । द्विवचनम् दुवअणं, दुहा वि सो सुरवहूसत्थो, द्विधापि स सुरवधूसार्थः । बहुलका अधिकार होनेसे, कचित् विकल्प होता है। उदा.दुउणो विउणो द्विगुणः। दुइओ विइओ द्वितीयः। कचित् (उ) नहीं होता। उदा.-द्विजः दिओ ! द्विरदः दिरओ। द्विधागतः दिहागओ। कचित् (इ का) ओ भी होता है। द्विवचनम् दोवअणं । नि (उपसर्ग) में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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