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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.२ अहव अहवा अथवा । ब वा । ह हा । इत्यादि । उत्खात, इत्यादि शब्दोंमेंउक्ख अं उक्खाअं उत्खातम् । कुमरो कुमारो कुमारः। खरं खाइरं खादिरम् । वलआ बलाआ बलाका। पअअंपाअअं प्राकृतम् । चमरो चामरो चामरः । कलओ कालाओ कलादः. (यानी) स्वर्णकार (सोनार)। हलिओ हालिओ हालिकः (अर्थात् ) कृषीवल: (किसान)। णराओ नाराओ नाराचः । तलविंटं ताल विंटं तालवृन्तम् । ठविओ ठाविओ स्थापितः। पट्टविओ पट्टाविओ प्रस्थापितः । संठविओ. संठाविओ संस्थापितः । इत्यादि । ब्राह्मण और पूर्वाह्न शब्दोंमेंभी (यह नियम लगता है), ऐसा कोई कहते हैं। उदा.- बम्हणो बाम्हणो । पुव्वण्हो पुव्वाण्हो ॥ ३७ ॥ पनि वा ॥ ३८ ॥ घम् प्रत्ययके कारण आनेवाला जो वृद्धिरूप आकार, वह जब आद्य होता है तब उसका -हस्व विकल्पसे होता है । (इस सूत्रमें) पुनः 'वा' शब्द का ग्रहण किये जानेसे, अगले सूत्रमें (१.२.३९ में) विकल्प नहीं होता। उदा.-पवहो पवाहो प्रवाहः। पहरो पहारो प्रहारः। पअरो पआरो प्रकारः या प्रचारः। पत्थओ पत्थाओ प्रस्तावः । क्वचित (इस प्रकारका -हस्व) नहीं होता। उदा.-रागः राओ। भाग: भाओ॥ ३८ ॥ स्वरस्य बिन्द्वमि ॥ ३९ ॥ . बिंदु (अनुस्वार) और अम् यानी द्वितीया एकवचन (प्रत्यय) आगे होनेपर, (पिछले) स्वरका हस्व होता है। उदा.- अनुरवार आगे होनेपरमांसम् मंसं । मांसलम् मंसलं । पांसुः पंसू। कास्यम् कंसं। वांशिकः वंसिओ। काञ्चनम् कंचणं। लाञ्छनम् लठणं । द्वितीया एक वचन (प्रत्यय) आगे होनेपर-गंगं । मालं। नई। वहुं ॥ ३९॥ संयोगे ॥ ४०॥ (यंजनोंका) संयोग (संयुक्त व्यंजन) आगे होनेपर, (उसके) पूर्व (पिछला) (दीर्घ) स्वर हस्व होता है। उदा.-आ (का हस्व-आम्रम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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