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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा.४ सुपा तुम्हासु ॥ ४२ ॥ युष्मद्को सुप् (पत्यय) के साथ तुम्हासु ऐसा आदेश होता है। उदा.तुम्हासु ठि, युष्मासु स्थितम् ।। ४२ ॥ तुम्हहमाम्भ्यस्भ्याम् ॥ ४३ ॥ ___ युष्मद्को आम् और भ्यस् के साथ तुम्हह ऐसा आदेश होता है । उदा. तुम्हहं केरउ धणु, युष्माकं संबंधि धनम् । तुम्हहं होतउ आगदो, युष्मभ्यं भवन्नागतः ॥ ४३ ॥ अस्मदोऽम्हहं ॥४४॥ ____ अपभ्रंशमें अस्मद् को आम और भ्यस् के माथ अम्हहं ऐसा आदेश होता है । उदा. अह भग्गा अम्हहं तणा [७]। अम्हहं होतउ आगदो, अस्मद् भवनागतः ।। ४४ ॥ सौ हउं ॥४५॥ (इस सूत्रमें ३,४.४४ से) अस्मदः पदकी अनुवृत्ति है। अपभ्रंशमें अस्मद् को सु आगे होनेपर हउं ऐसा आदेश हो जाता है। उदा.-तसु हउँ कलिजुगि दुल्लहहाँ [१०७] ॥ ४५ ।। मई ङ्यम्टा ॥४६॥ - अस्मद्को ङि, अम् और टा इन (प्रत्ययों)के साथ मई ऐसा आदेश होता है। उदा.-मई, मयि मां मया वा डिके साथ-मई पई बेहिं वि रणगयहिं [१३७]। अम् के साथ-मई मेल्लन्तहाँ तु झु [१३८] । टाके साथ-मइँ जाणिवे पिअविरहिअहं [१४] || ४६ ॥ कुस्ङसिना महु मज्झु ।। ४७।। अपभ्रंशमें अस्मद्को उम् और ङसि इन (प्रत्ययों)के साथ महु, मछ ऐसे आदेश हो जाते हैं । वचनकी भिन्नता होनेसे, (ये आदेश) यथाक्रम नहीं होते। उदा.-महु कंतहाँ बे दोसडा [४८] | जइ भग्गां पारकहा तो सहि मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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