SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा.४ (युष्माभिरस्माभिर्यत्कृतं दृष्टं तद् बहुजनेन । तत्तावान् समरभरो निर्जित एकक्षणेन ।) तुमने हमने जो किया उसे बहुत लोगोंने देखा | उस समय उतना बडा समर (हमसे) एक क्षणमें जीता गया। क्यम्टा पई तई॥ ४० ॥ ____ अपभ्रंशमें डि, अम् और टा इनके साथ युष्मदुको पई, तई ऐसे आदेश हो जाते हैं। उदा.-पई तई, त्वां त्वया त्वयि वा ।। ४.॥ डिप्रत्ययके साथमई पर बेहि वि रणगयहिं को जयसिरि तकेइ । केसहिँ लेप्पिणु जमघारिणि भण सुहुँ को थकेइ ॥१३७॥ (-हे.३७०.३) (मयि त्वपि द्वयोरपि रणगतयोः को जयश्रियं तर्कयति । केशेषु लात्वा यमगृहिणी भण सुख कस्तिष्ठति ।।) तू और मैं दोनोंके रणक्षेत्रमें चले जानेपर (दूसरा) कौन विजयश्रीकी इच्छा करेगा ? यमकी पत्नीके केश पकडनेपर कौन सुखसे रहता है, बता । अम् प्रत्ययके साथपइँ मेल्लन्ति, महु मरणु मई मेल्लन्तहों तुज्छु । सारस जसु जो वेग्गला सो वि किदन्तहाँ सज्झु ॥१३८॥(=हे. ३७०.४) . (वां मुश्चन्त्या मम मरणं मां मुश्चतस्तव । सारस यस्य यो दरं सोऽपि कृतान्तस्य साध्यः ॥ (सारस पक्षीकी तरह) यदि मने तुझे छोडा तो मैं मर जाऊँगी । त् मुझे छोडेगा तो तू मर जायेगा। (क्योंकि सारस पक्षीके बारेमें) जो सारस जिससे दूर रहेगा वह कृतान्तका भक्ष्य हो जाता है । इसी प्रकार तई। टा-प्रत्ययके साथपइँ मुक्काहं वि वरतरु फिट्टइ पत्तत्तणं न पत्ताणं। तुह पुणु छाया जइ होज्ज कहवि तो तेहि पत्तेहिं ॥१३९॥ (-हे. ३७०.१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy