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हिन्दी अनुवाद - अ. ३, पा. ४
ङसङस्योर्हे ॥ २१ ॥
(इस सूत्र में ३.४.२० से ) स्त्रियाम् पदकी अनुवृत्ति है। अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में रहनेवाली संज्ञाके आगे आनेवाले डस और ङसि यानी षष्टी एकवचन और पंचमी एकवचन इनको हे ऐसा आदेश प्राप्त होता है ॥२१॥ ङस् (को हे आदेश )
तुच्छमज्झ तुच्छरोमावलिहें तुच्छराय तुच्छ रहा सह । पिअत्रयणु अलहन्ति तुच्छकाय वम्महनिवास है । अन्जु तुच्छउँ त घण तं अक्खणह न जाइ ।
करिथतरुमुद्धहें जं मणु विचित्र न माइ || १२० || ( = हे. ३५०. १) (तुच्छमध्यायाः तुच्छर' मावल्यास्तुच्छ रागायास्तुच्छतरहासायाः । प्रियवचनमलभमानायास्तुच्छ कायायास्तु च्छमन्मथ निवासायाः । अन्यद्यत्तुच्छं तस्या धन्यायास्तदाख्यातुं न याति । कूटं स्तनान्तरं मुग्धाया यन्मनो वर्त्मनि न माति || )
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(सुंदरीका) मध्यभाग कटिभाग तुम्छ' है, रोमावली सुंदर है, प्रेम तुच्छ है, हास्य तुच्छ है । प्रियकर की कोइ वार्ता न पानेसे उसका शरीर तुच्छ हुआ है | वह ( मानो ) मदनका निवास है । उस सुंदरीका अन्यभी जो कुछ तुच्छ है वह कहा नहीं जा सकता । आश्चर्य (गूढ ) हैं कि उस -मुग्धा के स्तनोंके बीच का भाग इतना तुच्छ हैं कि उस मार्गपर मनभी नहीं समाता ।
ङनि (को हे आदेश ) ---
ICT जाया विसम ण [ ४८] ||
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१ पतला, नाजुक, सूक्ष्म, कृश, इत्यादि अर्थों में यहाँ तुच्छ शब्दका प्रयोग किया गया है ।
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