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________________ त्रिविक्रम - प्राकृत-व्याकरण यद्यपि वह वेद प्रमाण है, तथापि रजस्वला स्त्रीके साथ सोनेकी मनाही है, पर जागे रहने को किसने मना किया है ? क्त्व इ इ इवि अवि ।। १८ ।। २३४ अपभ्रंशमें क्त्वा प्रत्ययको इ, इउ, इवि, अवि ऐसे चार आदेश होते हैं । उदा. - करइ करिउ करिवि करवि, कृत्वा ॥ १८ !! इ (आदेशका उदाहरण ) - हिअडा जइ वेरिअ घणा तो किं अब्भि चडाहुं । अम्हहं बे हत्था जइ पुणु मारि मराहं ॥ २५ ॥ ( = हे. ४३९.१) (हृदय यदि वैरिणो घनास्तत्किमभ्रे आरोहामः । अस्माकं द्वौ हस्तौ यदि पुनर्मारयित्वा म्रियामहे | | ) हे हृदय, यद्यपि मेघ (अपने) वैरी हैं तो हम आकाशपर चढ़ेंगे क्या ? हमारे दो हाथ हैं; (यदि मरना ही है तो उन्हें) मारकरही मरेंगे । इ (आदेशका उदाहरण ) - अम्मि ओहर वज्जमा निच्चु ज संमुह ठन्ति । महु थक्कहा समरंगाणि गयघड भंजिउ जन्ति ।। २६ ।। (हे. ३९५.५) (मातः पयोधरी वज्रमयो नित्यं यौ संमुखं तिष्टतः । मम स्थितस्य समराङ्गणे गजघटा भक्त्वा यान्ति ।।) हे माँ, (ये) मेरे स्तन वज्रमय हैं, (कारण) वे नित्य मेरे (प्रियकर के ) सामने होते हैं, (और) समरांगण में गजसमूह भग्न करनेके लिए जाते हैं । इवि (आदेशका उदाहरण ) - रक्खइ सा विसहारिणी बे कर चुंबिवि जीउ । पडिबिंबिभमुंजालु जलु जेहिँ अडो हिउँ पीउँ । २७।। (हे. ४३९.२) ( रक्षति सा विषहारिणी द्वौ करौ चुम्बित्वा जीवम् । प्रतिबिम्बितमुञ्जालं जलं याभ्यामनवगाह्य पीतम् ॥ ) जिसमें मुंजका प्रतिबिंब पडा है ऐसा पानी, पानीमें प्रवेश न करते हुए, जिन हाथोंसे पिया गया है उन हाथोंका चुंबन लेकर, वह जलवाहक बाला जीवकी रक्षा करती है 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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