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________________ तु हिन्दी अनुवाद - अ. ३, पा. ३ मो वम् || ३ || अपभ्रंशमें स्वरके आगे, असंयुक्त, अनादि होनेवाले मकार को वस्व विकससे प्राप्त होता है । (सूत्रमेंसे नमू में ) ङ् इत् होनेसे, (यह वकार) सानुनासिक (=) होता है । उदा. कवल कमलु । भवरु भ्रमरु । व्याकरणके नियमानुसार आनेवाले मकारकाभी (सानुनानिक वकार होता है) । उदा.— जिव | | | स्वरके आगे (मकार होनेपरही वकार होता है, अन्यथा नहीं) | उदा. - संनाणेइ लोउ । (मकार) असंयुक्त ( होनेपरही वकार होता है, अन्यथा नहीं)। उदा.-तसु पर सभलउँ जम्मु [३] । ( मकार ) अनादि होने परही (वकार होता है, अन्यथा नहीं) | उदा. - मअणु ॥ ३ ॥ ह्मो म्हम् ॥ ४ ॥ अपभ्रंश में ह्म ऐसा यह (संयुक्ताक्षर ) मकारसे आक्रान्त हकारको (म्ह) विकल्प से प्राप्त करता है । 'मनमह्मामस्मरश्मौ म्हः' (१.४.६७) सूत्रानुसार प्राकृत के लक्षण में कहा गया म्ह यहाँ लिया जाता है, कारण संस्कृत में उसका असंभव है | उदा.- गिम्हो गिझो । बम्हणों बह्मणो ॥ ४ ॥ बम्ह तें विरला केविनर जे सव्वंगछइल | जे वंका ते बंचयर जे उज्जुअ तें बइल || ६ || (= हे. ४१२.१) (ब्रह्मस्ते विरलाः केऽपि नरा ये सर्वागच्छेकाः । २२७ ये वास्ते वचतरा ये ऋजुकास्ते बलीवर्दीः ॥1) हे ब्राह्मण, जो सर्वोगतः निपुण हैं वे विरल हैं; जो बाँके हैं वे अधिक वंचक हैं; जो सीधे हैं वे बैल हैं ॥ रो लुकमधः ॥ ५ ॥ अपभ्रंशमें संयोगमें अनंतर रहनेवाले रेफका लुक् यानी लोप विकल्पसे होता है | उदा. -पिउ प्रिउ प्रियः । जइ केइ पावीसु पिउ [४] ॥ ५ ॥ विकल्पपक्ष में Jain Education International जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि मज्झु प्रिएण । अह भग्गा अम्हहंतणा तो तें मारिअडेण ॥ ७ ।। (=हे. ३७९.२) ( यदि भग्नाः परकीयास्ततः सखि मम प्रियेण । अथ भग्ना अस्मदीयास्ततस्तेन मारितेन ॥ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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