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________________ लो ळः ।। ४८ ।। हिन्दी अनुवाद - अ. ३, पा. २ पैशाची में लकारका ळकार होता है । उदा.- सीळं । कुळं । जळा ૨૨: फळं । कमळं ॥ ४८ ॥ दुस्र्यािगे ।। ४९ ॥ पैशाची में यादृश, इत्यादि शब्दों मेंसे दृ के स्थानपर ति ऐसा आदेश होता है | उदा. - यादृशः यातिसो | भवादृशः भवातिसो । तादृशः तातिसो । अस्मादृशः अम्हा तिसो । अन्यादृशः अञ्ञातिसो । ईदृश: ईतिसो । कीदृशः 1 केतिसो | एतादृशः एतातिसो । इत्यादि ।। ४९ ।। नष्टां रिअसिनसिटाः क्वचित् ॥ ५० ॥ पैशाची में र्य, स्न और ष्ट इनको यथाक्रम रिअ, सिन और सिट ऐसे आदेश कचित् होते हैं । उदा-भायी भारिआ । स्नानम् सिनानं । कष्टम् कसिटं । कचित्, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण सर्वत्र ऐसा वर्णान्तर नहीं होता) | उदा. अय्यो । सुसा । भट्ठो ।। ५० ।। टोस्तु तु ।। ५१ ।। पैशाचीमें टु इसका तु ऐसा विकल्पसे होता है । उदा.- कुटुम्बकम् कुतुम्बकं ।। ५१ ।। यः पो हृदये ॥ ५२ ॥ पैशाचीमें हृदय शब्द में य का प होता है । उदा-हितपकं । किं पि हितपके अत्थं चिन्तयमानी ।। ५२ । टा नेन तदिदमोः ॥ ५३ ॥ पैशाची में, टा-वचन के साथ तद् और इदम् इनके स्थानपर नेन ऐसा आदेश होता है । उदा. - नेन, तेन अनेन वा ॥ ५३ ॥ Jain Education International नाए स्त्रियाम् ॥ ५४ ॥ पैशाची में, तद् और इदम् इनको टा-वचनके साथ नाए ऐसा आदेश स्त्रीलिंगमें होता है | उदा. - पूचितो चनाए पातव कुसुमपतानेन । नाए, तया अनया वा ॥। ५४ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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